Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

lockdown poem : हे ईश्वर! तुझे ही तो सब कुछ फिर से चमकाना है सूरज सा.

हमें फॉलो करें lockdown poem : हे ईश्वर! तुझे ही तो सब कुछ फिर से चमकाना है सूरज सा.
webdunia

डॉ. पूर्णिमा भारद्वाज

|| हे ईश्वर ||
 
कितना पकड़ेगा वह
शेष छुटी हुई
इस गुनगुनी साँझ को
कि जब लौटता था
खेतों से ,
तो धूल का
पूरा का पूरा गुबार
खेत की मेड़
मुड़ते ही
मुँह और आंखों में
किरकिरा जाता था
पर हिस्सा था वो
जीने के ढंग का
मेहनत के रंग का
 
अब,
घर की चौखट के
भीतर 
वह कैसे खिंच कर लाये
खेतों की मेड़
और बैलों के
गले की
बजती घंटियाँ
धूल का गुबार
सांझ की चमक
घर लौटने की गमक
क्या कुछ नहीं
छूट रहा
इन दिनों
मुट्ठी भर उजास
पकड़ते-पकड़ते  
कई टोकरी धूप
ढूलक कर
गिर चुकी है
उसके हाथों
 
आंखों की पलकें
चमका कर
देखता है वह
दूर
बरौनियों के बीच से
चिलकती धूप में
चमकती गेहूँ की बाली
धूप की तेज़ चमक में
सोने सी
जगमग हो रही
 
पारसाल से
बोल रही सरसुती
आज पैरों को
दिखाकर बोली
गिलट की पाजेब
अब न पहनूंगी
पता नहीं,
अगवाड़े, खूंटे से
बंधे बैलों की
बिना आवाज वाली घंटी
याद न आई उसे  
 
आँगन -औसारे, 
दिवाल से सटा
तुलसी का बिरवा
चाहे कित्ता भी
डालो पानी ,
इन दिनों
हरा नहीं होता
 
सामने,
घीसू के टिन पर 
पड़ती ,चटकती धूप
ठीक उसकी
आँखों को चौंधियाती
परावर्तन का
पूरा विज्ञान
बताती है....
 
जीवन
किस्मत
इच्छाएँ
सपने
आस
विश्वास
हे ईश्वर!
तुझे ही तो
सब कुछ
फिर से
चमकाना है
सूरज सा....
 
- डॉ. पूर्णिमा भारद्वाज
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

मुसलमानों से साफ़-साफ़ बात क्यों नहीं की जा रही है?