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कविता : गुलमोहर की अर्जी

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संजय वर्मा "दृष्टि "
गुलमोहर किसी से कुछ नहीं कहता 
वो देता है आंखों को आकर्षण,मन को सुकून
 
गर्मी की तपिश से सूख जाते है कंठ 
तब ,मिट्टी के मटकों से 
हो जाती है दोस्ती इंसानो की
लकड़ी कवेलू से बनी झोपड़ियां 
देने लगती सुखद नींद 
आम, नीम, पीपल के पेड़
बन जाते है मां का आंचल
 
तब लगने लगता 
क्यों काट दिया हमने 
बेजुबान वृक्षों को 
सुख सुविधाओं के मतलबों के कारण
 
अब शहरों में कुछ गुलमोहर ही बचे 
जो प्रतिनिधित्व कर रहे 
गांव में बचे पेड़ों का 
 
और लगा रहे अर्जी सुर्ख फूलों से 
बचे पेड़ों को बचाने 
और नए लगाने की

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