Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

कविता : प्रकृति मुस्कुराएगी

हमें फॉलो करें कविता :  प्रकृति मुस्कुराएगी
webdunia

डॉ. दीपा मनीष व्यास

भौर का उजियारा हुआ
देखो सुंदर धरा मुस्काई
पंछी चहचहाकर निकले
हरितिमा चहुंओर छाई
 
वो देखो कल-कल करती नदी
गीत गाती, बहती आई
दूर कहीं पर्वतों पर
सिंदूरी घटा-सी छाई
वियोग की ऋतु में भी
मिलन की आस पाई
दूर-दूर फैले खेतों ने
कृषकों की मुस्कान बढ़ाई
 
वृक्षों की ओट में छुपकर
मां ने मीठी फटकार लगाई
 
अनुपम सौंदर्य से लिप्त धरा
प्रेम राग सुना रही 
उफ्फ ! मेरे नैनों से
निंदिया अब तू क्यों जा रही ?
यूं उम्मीदों से भरा
क्यों मेरा स्वप्न ले जा रही ?
 
देख झंझावातों से परे पुनः
भौर सुहानी आएगी
ये स्वप्न नहीं हकीकत है
प्रकृति में फिर रवानी आएगी
 
लगाएंगें असंख्य वृक्ष हम
और प्रकृति मुस्कुराएगी
और प्रकृति मुस्कुराएगी।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

उफ, यह पसीना..जानिए, कैसे निपटें इस बदबूदार समस्या से...