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बुजुर्गों का महत्व दर्शाती कविता : आधुनिक

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संजय वर्मा 'दृष्ट‍ि'

क्या जिंदगी आधुनिक हो गई 
मां अब नहीं देखती दीवार पर 
धुप आने का समय 
अचार में क्या मिलाया जाए और कितना 
बूढ़े पग नहीं दबाए जाते अब क्यों 
क्या जिंदगी आधुनिक हो गई
चश्मे के नंबर कब बढ़ गए 
सुई में धागा नहीं डलता, कांप रहे हाथ 
बूढ़ों को संग ले जाने में शर्म हुई पागल अब क्यों 
क्या जिंदगी आधुनिक हो गई
 
घर के पिछवाड़े से आती खांसी की आवाजें 
संयुक्त दि‍खते परिवार मगर लगता अकेलापन 
कुछ खाने की लालसा मगर कहने में संकोच अब क्यों   
क्या जिंदगी आधुनिक हो गई
 
बुजुर्गों का आशीर्वाद /सलाह /अनुभव पर लगा जंग 
भाग-दौड़ भरी दुनिया में उनके पास बैठने का समय कहां 
गुमसुम से बैठे पार्क में और अकेले जाते धार्मिक स्थान अब क्यों  
क्या जिंदगी आधुनिक हो गई
 
बुजुर्ग हैं तो रिश्ते हैं, नाम है, पहचान है 
अगर बुजुर्ग नहीं तो बच्चों की कहानियां बेजान है 
ख्याल, आदर-सम्मान को करने लगे नजर अंदाज अब क्यों  
क्या जिंदगी आधुनिक हो गई

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