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कविता : कपोत का हौंसला

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संजय वर्मा 'दृष्ट‍ि'

धमाकों की गूंज से पीड़ित 
शांति के कई दूत (कपोत )
अपने बच्चों को 
छुपा रहे अपने पंखों से 
 
सोच रहे 
शांति के प्रतीक के रूप में 
क्यों उड़ाते हैं हमें 
हमारा कहना कि 
जब जमी पर अशांति थमे 
तभी उड़ाना हमें 
लेकिन इंसान हमारी बोली 
भला कहां समझ पाता 
 
शांति का पाठ पढाने वालों
आतंक पहले खत्म करना होगा 
यदि यह हौंसला 
नहीं है तो बेवजह मत उड़ाओ हमें 
 
हम खुद उड़ना जानते 
उड़कर बता देंगे दुनिया को 
और यह कहेंगे "बोलो  कि अब आजाद हैं"
आतंक के खात्मे के खिलाफ  
आवाज उठाने के लिए 
क्योंकि 
हम ही है असली संदेश वाहक 
शांति के 
 
धरती पर आतंक को 
शांति का पाठ पढ़ाने का 
हम कपोत  हौंसला लेकर आए हैं

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