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कविता : काश इनके भी दिल होते

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पुष्पा परजिया

काश ऐसे चट्टानी इंसा के भी जज्बात होते
जो बंजर न होकर फूलों से खिलते 
 
दिल हुआ करते इसमें भी जो,
इस प्यारी सी धरती को 
सुखों के फूलों से सजाते 
 
कठोरता न होती इनमें
और न होते अकड़न से भरे इनके नजारे 
लगते ये भी किसी को प्यारे
नफरत न लोग इससे करते 











बिन भावनाओं के 
ये मानव तन और जीवन कैसा ?  
बिन अपनों के अपनत्व किसका ?
 
गर दिलों को चट्टान न बनाते
तो आज लाखों लोग यूं न मरते 
 
चट्टान-सा दिल रखने वालों  
जरा-सा अपने दिल को पिघला लो 
भरो ठोस-सा प्यार इसमें और 
परायों को अपना बना लो 
 
बजाए इसके की विध्वंशी  
नाद छेड़ो, सिर्फ एक बार तो
खुद को क्षण भर को खुदा बना लो 
देखो रहम है कितना उसमें    
उसके कहे रस्ते को अपना लो 
 
खुश होंगे भगवान और खुदा तुमसे ,
यदि मानव को मानव बन
गले से लगा लो
 
एक पल को सोचना तुम  
विध्वंश करने से पहले 
  
बर्बाद कर रहे हो उसे तुम  
जिसे बनाने में खुदा भगवन को
लगी थी कितनी मेहनत  
न करना बर्बाद जीवन को 
बरत लेना थोड़ी रहमत

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