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कविता : यादें

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संजय वर्मा 'दृष्ट‍ि'

गुजर गए अपनों की 
स्मृतियों को याद करके 
सोचता हूं, कितना सूनापन है 
उनके बिना 
घर की उनकी संजोई 
हर चीज को जब छूता हूँ 
तब उनकी जीवंतता का 
अहसास होने लगता 
डबडबाई आंखों/भरे मन से 
एलबम के पन्ने उलटता 
तब जीवन में उनके 
संग होने का आभास होता है 
 
उनकी बात निकलने पर 
अच्छाईयां मानस पटल पर 
स्मृतियों में ऊर्जा भरने लगती है 
 
कहते है स्मृतियां अमर है 
लेकिन यादों की ऊर्जा पर 
इसलिए कहा गया है कि 
करोगे याद तो हर बात 
याद आएगी।

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