राजकुमार कुम्भज
कभी बारिश के वास्ते
कभी बारिश के रास्ते हाहाकार
और कभी बारिश में हठात्
महंगा हुआ जाता है विरोध
विरोध में जाता है जो भी
जाता है छुपते-छुपाते ही
छुपते-छुपाते ही जाता है
अंधकार को हरने सामान्य-सा सूरज तक
एक न एक दिन अकस्मात ही
किंतु गहन-गंभीर चट्टानों के पीछे तक
वहां उस एक अंधकार में भी
बसती है एक दुनिया वह, वह भी
जो कभी बारिश के रास्ते हाहाकार
कभी बारिश के वास्ते।