निशा माथुर
ना जाने किस ख्याल में खोई हुई,
पलकों पे नाचती सी कुनमुनी नींदे!!
तेरी यादों की मखमली चादर ओढ़ी हुई
दिल में झांक इतराती हैं कुनमुनी नींदे!!
तुझसे मुलाकातों का जिक्र करती हुई
हौठों पे यूं मुस्काती हैं कुनमुनी नींदे!!
बरिशों के मौसम में भीगी बरसती हुईं
जुल्फों में छुप भीगती हैं कुनमुनी नींदे!!
सिर के पल्लू को यूं दातों से दबाती हुईं
माथे की बिंदीया पे शरमाती कुनमुनी नींदे!!
अंधियारी रातों में इंतजार कर रोती हुईं
आंखों से गंगा सी बहती हैं कुनमुनी नींदे!!
सितारों के फूलों को चुनकर लाती हुई
फलक पे जाके टक जाती कुनमुनी नींदे!!
शब्दों की माला में से अर्थों को ढूंढती हुईं
सपनें खूंटी पे टांग, ऊंघती कुनमुनी नींदे
विरह में जलती जूगनू-सी भटकती हुईं
मुझसे मुझको ही चुराती हैं कुनमुनी नींदे
पिया मिलन के सौ-सौ बहाने सोचती हुईं
हाथ लकीरों से तुझे मांगती कुनमुनी नींदे!!