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Sunday, 13 April 2025
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हिन्दी कविता : प्रकृति के बाराती

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संजय वर्मा 'दृष्ट‍ि'

पहाड़ों पर टेसू रंग बिखेर जाते 
लगता पहाड़ ने बांध रखा हो सेहरा 
घर के आंगन में टेसू का मन नहीं लगता 
उसे सदैव सुहाती पहाड़ की आबों हवा
 
मेहंदी की बागड़ से आती महक 
लगता कोई रचा रहा हो मेहंदी 
पीली सरसों की बगि‍या 
लगता जैसे शादी के लिए 

बगिया के हाथ कर दिए हो पीले 
भवरें-कोयल गा रहे स्वागत गीत
दिखता प्रकृति भी रचाती विवाह
उगते फूल आमों पर आती बहारें 
 
आमों की घनी छांव तले 
जीव बना लेते शादी का पांडाल 
यही तो है असल में 
प्रकृति के बाराती 
 
नदियां कल-कल कर 
उन्हें लोक गीत सुनाती 
एक तरफ पगडंडियों से 
निकल रही इंसानों की बारात 
 
सूरज मुस्काया 
बसंत के कानों में धीमे से कहा 
लो आ गई एक और बारात 
आमों के वृक्ष तले पांडाल में 
 
हिन्दी कविता : बाराती 
 
पहाड़ों पर टेसू रंग बिखेर जाते 
लगता पहाड़ ने बांध रखा हो सेहरा 
घर के आंगन में टेसू का मन नहीं लगता 
उसे सदैव सुहाती पहाड़ की आबों हवा
 
मेहंदी की बागड़ से आती महक 
लगता कोई रचा रहा हो मेहंदी 
पीली सरसों की बगि‍या 
लगता जैसे शादी के लिए 
 
बगिया के हाथ कर दिए हो पीले 
भवरें-कोयल गा रहे स्वागत गीत
दिखता प्रकृति भी रचाती विवाह
उगते फूल आमों पर आती बहारें 
 
आमों की घनी छांव तले 
जीव बना लेते शादी का पांडाल 
यही तो है असल में 
प्रकृति के बाराती 
 
नदियां कल-कल कर 
उन्हें लोक गीत सुनाती 
एक तरफ पगडंडियों से 
निकल रही इंसानों की बारात 
 
सूरज मुस्काया 
बसंत के कानों में धीमे से कहा 
लो आ गई एक और बारात 
आमों के वृक्ष तले पांडाल में

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