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हिन्दी कविता : नयन

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संजय वर्मा 'दृष्ट‍ि'

नीर भरे नयन पलकों पर टिके 
रिश्तों का सच बिन बोले कहते
 
यादों की बातें ठहर जाते हैं पग 
सुकून पाने को थके उम्र के पड़ाव 

निढाल हुए मन पूछ परख रास्ता 
भूलने अब लगी राहें इंतजार की 
 
रौशनी चकाचौंध धुंधलाए से नैन 
कहां खोजे आकृति जो हो गई अब 
 
दूरियों के बादलों में तारों के आंचल में 
निगाह से बहुत दूर जिसे लोग देखकर 
कहते, वो रहा चांद 

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