कोहरे की रजाई ओढ़े धूप,
तेरे आने का शगुन देती है।
खिड़की से झांकता सूरज,
मुझे मेरे होने का अहसास कराता है।
दिन बीत जाता है किसी,
अमीर के अरमानों की तरह,
रात चांद की बिंदी लिए मुस्काती है।
चीखती पीड़ा जब दिल को चीरकर,
उतरती है ओठों पर।
शब्द अंगार बन,
जला देते हैं अस्तित्व को।
वक्त के पैबंद से झांकती खुशी,
दिल में जाने का रास्ता ढूंढती है।
लेकिन जख्मों के जखीरे,
रोक देते हैं उस नन्ही खुशी को।
यादों के हरसिंगार लिए,
सपने अपने से हो जाते हैं।
कुछ ख्वाहिशें टूटकर बिखर गई हैं,
हवा में खुशबुओं की मानिंद।
एक तितली ठहरकर,
मेरे कान में कुछ कह गई।
मैं पत्थर-सा खड़ा रह गया,
वह पानी-सी गुजर गई।