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हिन्दी कविता : उसकी बरबादी, हमारा पसोपेश ----!

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डॉ. रामकृष्ण सिंगी

पड़ोसी देश जब धूर्त, बेमुरव्वत, खूंखार हो। 
स्वार्थी, आत्मघाती, ढीठ, जिसे समझाना दुश्वार हो।।  
बर्बर, निर्दय, संसार भर में बदनाम हो, कमीन हो। 
ऊपर से  जिसकी पीठ पर अवसरवादी चीन हो।।  1 ।।
 
फिर तो दो ही रास्ते हैं, भारत जैसे गंभीर देश के पास। 
या तो करे अपनी सुरक्षा का पुख्ता इन्तजाम,
या आगे बढ़कर आक्रमण करे अनायास।।  2 ।।
 
पर हाँ, विकास, बस विकास ही हमारी प्राथमिकता है। 
हमने सदा शांति, मैत्री, सहयोग का रास्ता चुना है।।  
युद्ध, अशान्ति, टकराव हमारे ऐजेण्डा में नहीं हैं। 
इसी पर संसार भर में हमें प्रशंसा मिली है।।  
संसार भर है मित्र हमारा उन एक दो को छोड़कर। 
हमें लांछित नहीं होना है सबका विश्वास तोड़कर।।  3 ।।
 
सही है कि वह देश खड़ा है बरबादी की कग़ार पर। 
उसकी सारी हेकड़ी टिकी है उधार, बस उधार,पर। 
खोखली अर्थव्यवस्था, अन्दरूनी राजनीति में बिखरा हुआ। 
बेहिसाब कर्ज में डूबा, ऊपर से जिन्दा, अन्दर से मरा हुआ। 4 ।।
 
जिसके बाशिन्दे ग़फ़लत में, शासक शानो-शौकत में,
सेना असली  ताकत में। 
अल्लाह भी क्या दे  पायेगा पनाह,
कहिये, उसे इस हालत में। 
कश्ती जर्जर, चहुँओर भँवर,
नाख़ुदा ढीठ, लफ़्फ़ाज़ जहाँ। 
नाकाफी होंगे अल्लाह के भी दिये 
सारे बचाव के साज वहाँ।।  5 ।।
 


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