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बेटी पर मार्मिक कविता : मुझे मेरा जीवन दे दो

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हमें फॉलो करें बेटी पर मार्मिक कविता
, बुधवार, 8 जुलाई 2015 (15:31 IST)
राम लखारा ‘विपुल’
 
नन्ही सी कली
अभी नहीं खिली
खुश है वह 
इस इंतजार में
मां के दुलार में
पिता के प्यार में
हैं बड़ी उत्सुक
खुशियों की बहार में।
बुन रहीं ताना सपनों का
स्नेह मिलेगा अब अपनों का
आएगी आंगन में
उसके आने से खुशियां
क्योकि बेटी है प्यारी
प्यार लुटाती हैं दुनिया
मैं भी बटाऊंगी मां का हाथ
मुसीबत में दूंगी पिताजी का साथ।
 
कायर ना मुझे 
कोई छू पाएगा
अपनी गंदी हरकतों से
मुंह की खाएगा
अपने नन्हे हाथों से
घर का मैं करूंगी श्रृंगार
सजाऊंगी कोना हर
लगाऊंगी गृह वंदनवार 
भैया मेरा राजा है
उसकी बनुंगी मैं साखी
स्नेह उसपे लुटाउंगी
कलाई पर उसके
सजेगी मेरी राखी।
 
मेरे जन्म पर
दीये जलेंगे फल बटेगें 
अपने धीर चरित्र से
घर के मेरे सब
क्लेश मिटेंगे
खुश हूं मैं
दुनिया है खुश
मेरे आने से
परिवार है खुश।
 
पर ओ मां!
तुम डॉक्टर अंकल
के पास क्यों जा रही हो
पापा भी हैं साथ
लगता है डॉक्टर अंकल
से मेरे जन्म की तारीख
जानने की इच्छा है तुम्हें
मैं भी खुश हूं ऐ मां!
समझ सकती हूं
तुम्हारी भी खुशी
मुझे भी बड़ी जल्दी
हैं तुम्हारे संसार में आने की
तुम्हारा हर दुःख बंटाने की
तुम्हारी हर खुशी मनाने की।
 
आह! दर्द हो रहा हैं मां
यह क्या कर दिया अंकल ने
सांसें मेरी उखड़ रही हैं
मैं फंस गई कैसे दंगल में
तुम्हे तो मेरी जन्म की थी खुशी
फिर क्यों मेरी मौत में
छिपी हैं अब तुम्हारी खुशी
मुझे मेरा जीवन दे दो।
 
ऐ मां। मेरी बस यही इच्छा है
मैं चुपचाप घर का
हर काम करूंगी
ना किसी चीज की
कभी मांग करूंगी
घर के हर दुःख को
मैं बस अपने में सहन लूंगी
मांग करूंगी ना नए की
भैया के पुराने कपड़े
मैं शौक से पहन लूंगी।
 
आह! मां दर्द अब हैं बढ़ रहा
जहर शरीर में चढ़ रहा
मेरी गलती क्या हैं
कोई तो बतला दो
मैं मरना नहीं चाहती
मेरे पापा को कोई तो समझा दो
दोष मेरा गर था कोई
तो माफ भी कर दो ओ मां
कहते हैं दया की मूर्ति
और भगवान की छाया हैं मां
तुम्हारा दिल तो बहुत बड़ा हैं
यह सुना हैं मैने रब से
मेरा जन्म तो होने दो
आगे बढ़ जाउंगी में सबसे।
 
डॉक्टर अंकल तुम तो समझो
धरती के भगवान हो तुम
मुझ नन्हे फूल को तो बख्शों
मांगें मेरी थी एक तृण सी
लगता हैं हत्या हो रही एक भ्रूण की
ऐ मां! मेरी खुशी को तो समझो
दुनिया की बातों मे ना उलझो।
 
मैं तेरे आंगन की चिड़िया हुं
कभी किसी के आंगन की
मैं बन जाउंगी लक्ष्मी
तुम भी तो
एक कन्या थी ऐ मां।
फिर क्यों विध्वंस हो
कर रही अपनी ही जाति का।
 
मेरे प्यारे पापा! तुम तो समझो
देखों मां क्या कर रही
मुरझा रही हैं तुम्हारे फूल को
ओ पापा! आपकी लीला भी न्यारी हैं
पत्नी तुम्हें प्यारी हैं
अपने बेटे के पीछे आने वाली
बहू तुम्हें प्यारी हैं
फिर बेटी ही तुम्हारे
स्नेह से क्यों न्यारी हैं।
 
सब गर यूं बेटी का
जीवन जमींदोज करेंगें
क्या वह सिर्फ बेटों की
खड़ी एक फौज करेंगें
बेटे तो पा लोगे तुम
पर बहू कहां से लाओगे
जीवन आखिर होगा ऐसा ही
गर बेटी का मोल ना जान पाओगे।
 
जीवन की अब डोर मेरी
लगता हैं टूट रहीं
सांसें मेरी रूक चली हैं
रूह मेरी छूट रही हैं।
पूछुंगी मैं ऊपर उस रब से
क्या दुश्मनी थी मेरी इन सबसे
जो खुशियों पर प्रहार किया
मेरे सपनों पर वार किया
यूं जीवन मेरा क्षार किया।
 
आह! दर्द अब सह नहीं पा रहीं
लगता हैं जान अब जा रही
पर जाते-जाते बेटी धर्म
निभाए जा रही हूं
आंगन भरा रहे खुशियों से
यहीं दुआ दिए जा रही हूं।

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