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हिन्दी कविता : बहुत दुख होता है...

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डॉ. रामकृष्ण सिंगी

ऊपर से नीचे बहता है जब विकास के लिए आबंटित धन।
प्रशासकीय चैनलों में हो जाते हैं हजार रिसन।


 






अफसर/कर्मचारियों के जब फूटते हैं नासूर से पाप।
छापों में निकलता है रिश्वती धन अनाप-शनाप।
रोज-रोज अखबारों में पढ़-पढ़कर ये खबरें,
...बहुत दुख होता है।।1।।
 
बैंकों के बकाया से माल्याओं के महाभोज।
चिटफण्डवालों की कारगुजारियों से लुटते भोले निवेशक रोज-रोज।
जमीनों की हेरा-फेरी, सत्ताधारियों की सीनाजोरियां।
संतों के वैभव, पंचक्रोशी यात्रियों के सिरों पर बोरियां।
देख, सुन, पढ़कर ये विरोधाभासी खबरें,
...बहुत दुख होता है।।2।।
 
देश के प्रतिभावान छात्र/छात्राएं नौनिहाल।
विभिन्न क्षेत्रों में करते दिखते हैं उपलब्धियां कमाल।
अपनी अध्ययन साधना करते हैं अनुकूल/ प्रतिकूल परिवेश में,
इस पर भी प्रतिष्ठा अर्जित की है देश-विदेश में।
पर इन्हीं में कई होकर, कुंठा-निराशा के शिकार।
आए दिन आत्महत्याएं कर रहे कई होनहार,
...हाय! बहुत दुख होता है।।3।।
 
संसद में भांज रहे कुतर्कों की लाठियां अंधविरोध के अंधेरों में।
वे जो स्वयं घिरे हैं विविध लांछनों के घेरों में।
मीडिया में नित नए खुलासे उभर रहे ढेरों में।
कल के सत्तासीन उलझ रहे कुसमय के फेरों में।
पर संसद के समय की बेशर्म बरबादी बार-बार।
असहाय देश, प्रजातंत्र रो रहा जार-जार।
...पढ़-पढ़कर बहुत दुख होता है।।4।।
 
विशाल देश के विशाल प्रश्न, समस्याएं हर तरफ खड़ी हुईं।
पिछली शिथिलताओं की बेल, अकर्मण्यता के वृक्ष पर चढ़ी हुई।
फिर भी मोदी, राजन, प्रणव, जेटली की टीम,
ईमानदार संकल्पों के साथ, सुदृढ़ कदमों से बढ़ी हुई।
जानकार लोगों के मन कृतज्ञ सराहना से गए हैं भर।
पर अमर्त्य सेन जैसों के भी सुनकर विपरीत स्वर।
...बहुत दुख होता है।।5।।
 

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