Dharma Sangrah

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

चलो एक दीया फिर से जलाएं

Advertiesment
हमें फॉलो करें poem on diya
webdunia

राकेशधर द्विवेदी

चलो एक दीया,
फिर से जलाएं।


 
अंधेरे को धरा से,
मार भगाएं।
 
रहे जिनकी जिंदगी में,
सदा है अंधेरे।
उजाले न आए,
कभी न देखे सबेरे।
उन्हें आके फिर से,
सजाए-संवारें।
 
चलो एक दीया
फिर से जलाएं।
अंधेरे को धरा से
मार भगाएं।
 
निशा बन गई,
जिनकी जिंदगी की।
कहानी,
हमेशा है देखी।
दुख और परेशानी,
उनके दर्द और घावों,
पर मरहम लगाएं।
 
चलो एक दीया,
फिर से जलाएं।
 
तिमिर है घना,
रात्रि न कटने वाली।
पता कब फिर से,
आएगी जीवन में दिवाली।
 
चलो उनके जीवन में,
सूरज बनके आएं।
उनके अंधकारपूर्ण जीवन में,
चांदनी बिखराएं। 
 
चलो एक दीया,
फिर से जलाएं।
अंधेरे को धरा से,
मार भगाएं।
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi