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इंदौर पर कविता : अपना इंदौर

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ज्योति जैन

* अहिल्या की विरासत, शिव को जल चढ़ाती
बाड़े को नमन् करने, रवि किरण अकुलाती
गैरों को शहर लगता, ये ठिया-ठौर है अपना
गर्व से हम कहते हैं, ये इंदौर है अपना..।
 
* जेठ के तपते माह में, जहां देती ठंडक 
छत पर सो जाते हैं, रजाई लेकर चारों ओर
रात-रात चलता रहता, उत्सव का दौर है अपना
गर्व से हम कहते हैं, ये इंदौर है अपना..।
 
* परदेसी जो पूछे ‘भई, ये जगह कहां है....?’’
’भिया’ घर तक छोड़ेंगे, ये वही जहां है
इंदौर उन सबका जिसका, ना कोई और अपना
गर्व से हम कहते हैं, ये इंदौर है अपना..।
 
* बस ये भाई-चारा। शहर में रखें बनाएं
थोड़ा बेढब हुआ है मिलकर इसे सजाएं
फिर से लौटा लाएं, स्वर्णिम दौर वो अपना
गर्व से हम कहते हैं, ये इंदौर है अपना..।
 
* हिन्दी सानन्द या मालवी जाजम जाऊं
इस माटी खेली, इसी में ही मिल जाऊं
एक यही बस देखा, ना कोई और है सपना
गर्व से हम कहते हैं, ये इंदौर है अपना..।
 
* एक समय था जब पिछड़ा-पिछड़ा रहता था..
आगे ना पीछे से ही नंबर आता था..
अब तो स्वच्छता में ही यह सिरमौर है अपना..
गर्व से हम कहते हैं, ये इंदौर है अपना।
 
* गीला सूखा कचरा अब तो अलग है रखना..
नंबर वन का देखा था, सच हो गया सपना..
बना रहे स्वच्छता का स्वर्णिम दौर ये अपना..
गर्व से हम कहते हैं, ये इंदौर है अपना..।
 
* स्वच्छता, भोजन, उत्सव में तो है नंबर वन..
यातायात के लिए भी अब जुट लेंगे जन-जन..
आदर्श शहर का ध्वज ले चला महापौर है अपना..
गर्व से हम कहते हैं, ये इंदौर है अपना।

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