Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

महाराणा प्रताप पर कविता :वह भारत का था अभिमान

Advertiesment
हमें फॉलो करें महाराणा प्रताप पर कविता :वह भारत का था अभिमान
webdunia

सुशील कुमार शर्मा

छंद- आल्हा या वीर
 
(16, 15 पर यति गुरु लघु चरणांत)
 
 
राणा सांगा का ये वंशज,
रखता था राजपूती शान।
कर स्वतंत्रता का उद्घोष,
वह भारत का था अभिमान।
 
मानसिंग ने हमला करके,
राणा जंगल दियो पठाय।
सारे संकट क्षण में आ गए,
घास की रोटी दे खवाय।
 
हल्दी घाटी रक्त से सन गई,
अरिदल मच गई चीख-पुकार।
हुआ युद्ध घनघोर अरावली,
प्रताप ने भरी हुंकार।
 
शत्रु समूह ने घेर लिया था,
डट गया सिंह-सा कर गर्जन।
सर्प-सा लहराता प्रताप,
चल पड़ा शत्रु का कर मर्दन।
 
मान सिंग को राणा ढूंढे,
चेतक पर बन के असवार।
हाथी के सिर पर दो टापें,
रख चेतक भरकर हुंकार।
 
रण में हाहाकार मचो तब, 
राणा की निकली तलवार
मौत बरस रही रणभूमि में,
राणा जले हृदय अंगार।
 
आंखन बाण लगो राणा के,
रण में न कछु रहो दिखाय।
स्वामिभक्त चेतक ले उड़ गयो,
राणा के लय प्राण बचाय।
 
मुकुट लगाकर राणाजी को,
मन्नाजी दय प्राण गंवाय।
प्राण त्यागकर घायल चेतक,
सीधो स्वर्ग सिधारो जाय।
 
सौ मूड़ को अकबर हो गयो, 
जीत न सको बनाफर राय।
स्वाभिमान कभी नहीं छूटे,
चाहे तन से प्राण गंवाय।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

कोरोना में जहां दुनिया बर्बाद हुई वहीं भारत में अरबपतियों की संख्या में 39 फीसदी का इजाफा, देश में दोगुना बढ़ी इन अमीरों की संपत्‍त‍ि