Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

मानसून पर कविता : बदलियां छाने लगी हैं

Advertiesment
हमें फॉलो करें poem on monsoon
webdunia

डॉ. रामकृष्ण सिंगी

लो! गगन में बदलियां छाने लगी हैं।
मानसूनी घटाओं की आहटें आने लगी हैं ।।1।। 
 
सूखे जलाशयों की गर्म आहों से।
तड़कते खेतों की अबोल करुण चाहों से।
किसानों की याचनाभरी निगाहों से।
निकली प्रार्थनाएं असर दिखलाने लगी हैं।
...बदलियां छाने लगी हैं ।।2।।
 
हवाएं भी पतझड़ी पत्ते बुहारने लगीं।
मानसूनी फिजाओं का पथ संवारने लगीं।
टीसभरे स्वर में टि‍टहरियां पुकारने लगीं।
प्रकृति अपना चतुर्मासी मंच सजाने लगी है। 
...बदलियां छाने लगी हैं ।।3।।
 
पक्षियों की चहचहाहटों में गूंजता खुशियों का शोर।
हरियालियों के अंकुर उमगने को आतुर चारों ओर।
मेघों की अगवानी में झूमते आमों पे मौर।
वर्षाजनित समृद्धि की संभावनाएं मुसकाने लगी हैं।
...बदलियां छाने लगी हैं ।।4।।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

जानिए जैतून के तेल के 10 बेहतरीन लाभ