Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

हिन्दी कविता : सरहदें...

Advertiesment
हमें फॉलो करें हिन्दी कविता : सरहदें...
webdunia

सुशील कुमार शर्मा

कई सरहदें बनीं लोग बंटते गए,
हम अपनों ही अपनों से कटते गए।
 
उस तरफ कुछ हिस्से थे मेरे मगर,
कुछ अजनबी से वो सिमटते गए।
 
दर्द बढ़ता गया दूरियां भी बढ़ीं,
सारे रिश्ते बस यूं ही बिगड़ते गए।
 
दर्द अपनों ने कुछ इस तरह का दिया,
वो हंसता रहा मेरे सिर कटते गए।
 
खून बिखरा हुआ है सरहदों पर मगर,
वो भी लड़ते गए हम भी लड़ते गए।
 
एक जमीन टुकड़ों में बंटती गई,
हम खामोशी से सब कुछ सहते गए।
 
सरहदों की रेखाएं खिंचती गईं,
देश बनते रहे रिश्ते मिटते गए।
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

भारत के उत्थान में बेटियों का योगदान