Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

मध्यप्रदेश के अध्यापक आंदोलन पर कविता: एक चीत्कार

हमें फॉलो करें मध्यप्रदेश के अध्यापक आंदोलन पर कविता: एक चीत्कार
webdunia

सुशील कुमार शर्मा

गोली मार देते उसको
उसकी इज्जत तो बचा लेते।
 
किसी औरत का मुंडन
पचास हजार या कुछ कम के बीच
चीत्कार करते लोग
बेहोश होते लोग
कितना भयावह सरकारी बलात्कार
और फिर भी चारों ओर सन्नाटा
जलियांवाला बाग भी कम है।
 
यह अमानुषिक बलात्कार
होता है उस समय जब एक काम के लिए
एक को काजू-किशमिश
और एक को सूखा कौर लात के साथ
उन अनगिनत शिक्षित बेरोजगारों के साथ
जो अतिथि विद्वान, अतिथि शिक्षक, अध्यापक
की तख्तियां टांगें कोशिश में हैं थामने की
पहाड़ से लुढ़कती सरकारी शिक्षा को।
 
इनके अधमरे, कुचले हाथ
कर रहे हैं असफल कोशिश
आखिरी सांस लेती राजनीति के पैरों तले कुचली
सिसकती, बिलखती सरकारी शिक्षा
लच्छेदार भाषणों के पिटारे में।
 
कुछ नहीं हैं उन फटे-चिथड़े पहने
टाटपट्टी पर इल्लीभरा मध्यान्ह भोजन करते
उस मजदूर बचपन को
न ही कुछ है उस शिल्पी शिवान को
जिसने अपनी आत्मा की चीत्कार को
अपने केशों के साथ विसर्जित किया है।
 
मैं नहीं कहूंगा कि शासन निष्ठुर है
ये भी नहीं कहूंगा कि असंवेदनशील है
बल्कि कहूंगा ये बलात्कारी है
जिसने बलात्कार किया है शिक्षा से
बलात्कार किया है शिक्षकों से
बलात्कार किया है नारी सम्मान से।
 
गोली मार देते उसको 
उसकी इज्जत तो बचा लेते। 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

1 घंटे में 2 बार सेक्‍स करें तो संतान की आशा ज्यादा...