Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

उन्नाव के बहाने एक कविता : वह देह कई कई बार उधेड़ी गई थी

हमें फॉलो करें उन्नाव के बहाने एक कविता : वह देह कई कई बार उधेड़ी गई थी
शिरीन भावसार
 
सट कर दीवार के एक कोने से
बेलगाम बहते आंसुओं से 
एक कहानी उकेरी गई थी....
 
मौन दीवार के भी हृदय में
वेदनाओं के धंसते शूल से
रक्त नलिकाएं रिसने लगी थी....
 
उम्र, रिश्ते, स्नेह, लगाव के बंधनों से मुक्त कर
दो उभार और एक छिद्र में समेटकर
मात्र देह घोषित की गई थी....
 
मौत के कगार पर खड़ी
टांके लगी पट्टियों में लपेटी
वह देह कई कई बार उधेड़ी गई थी....
 
बाद मौत से संघर्ष के और
झेलकर तमाम झंझावात
निरपराध अपराधिनी सी 
ज़मीन में नज़रे गढ़ाए
वह जीवित होकर 
पल पल मृत्यु को जी रही थी....
 
सह सकता भला कैसे पुरुषत्व
उठाना आवाज़ एक अबला का
अपनाकर नीति शाम दाम दंड भेद की
सहशरीर आवाज़ वह
कर दी गई चिर निद्रा के आधीन थी....
 
कब तक तमाशबीन बन
नमी आंखों की छुपाओगे
उमड़ आने दो सैलाब आंसुओं का 
कुछ तो साहस दिखलाओ अब....

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

तीन तलाक बिल पर कविता : विराम