-ऋतु मिश्र
जिंदगी
मैंने जब भी तुम्हें चाहा
एक महकता आंगन
रहीं तुम…
गुच्छों में खिले
रंग-बिरंगे….
फूलों की तरह
खुशबू से भरी
जिंदगी
तुम्हें जब भी जिया
एक नया दिन रहीं तुम
हर पल एक अकस्मात लिए…
कभी बेलौस हंसी
तो कभी
खिड़की पर उदास बैठी
दूर तक निहारती प्रेमिका…
जिंदगी
जब भी पढ़ना चाहा तुम्हें
हर पैराग्राफ में रहे
ढेरों
क्वेश्चनमार्क ???
जिंदगी
जब भी पलटकर देखा तुम्हें
दूर तक नहीं दिखे
पूर्णविराम।