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हिन्दी कविता : उनकी तमन्ना

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- रवि श्रीवास्तव
 

 
उन्होंने तमन्नाओं को पूरा कर लिया,
मुझे नहीं है उनसे कोई भी शिकवा।
किसी के वादों से बंधा मजबूर हूं,
उन्हें लगता है शायद कमजोर हूं।
 
बड़ों का आदर, छोटों का सम्मान सिखाया है,
मेरे परिवार ने मुझे, ये सब बताया है।
हर क्रिया की प्रतिक्रिया, हम भी दे सकते हैं,
जान हथेली पर हमेशा हम भी रखते हैं।
 
उम्र का लिहाज करके, इस बार सह गया,
चेहरे पर मुस्कान लाकर, क्रोध पी गया।
लगता है मंजिल से, ज्यादा नहीं दूर हूं।
किसी के वादों से बंधा मजबूर हूं,
उन्हें लगता है शायद कमजोर हूं।
 
दुआ खुदा से है, गलती न दोहराए,
रोष में आकर कहीं, हम अपना आपा न खो जाएं।
तोड़ दूंगा इस बार, वादों की वो जंजीर,
खुद लिख दूंगा, अपनी सोई हुई तकदीर।
 
परवाह नहीं है जमाने की, न जीने की है चाहत,
चल देंगे उस रास्ते पर, जिसमें दो पल की है राहत।
दिल पर लगे जख्मों का, मैं तो नासूर हूं,
उन्हें लगता है मैं शायद कमजोर हूं।
किसी के वादों से बंधा मैं तो मजबूर हूं।
 
 

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