Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

कविता : अच्छी ख़बरें हैं कितनी कम...

हमें फॉलो करें कविता : अच्छी ख़बरें हैं कितनी कम...
webdunia

डॉ. रामकृष्ण सिंगी

खिन्न होता है मन, रक्षा सौदों पर होती छीछालेदर पर।
उच्च पदासीनों पर जब, ओछी टिप्पणियां होतीं इधर-उधर।।
 
युवाओं के आत्मघात, बालाओं पर पिपासुओं के प्रहार।
वृद्धों के वृद्धाश्रमों को पलायन, अपनों से होकर बेजार।।
 
भीड़तंत्र के नृशंस हमले, हर दिन मौके-बेमौके।
चोरों के बेख़ौफ़ आक्रमण, बड़े सौदों में धोखे ही धोखे।।
 
रिश्वतखोर कार्मिकों के घर नगदी और सोने के भंडार।
मतदाताओं को रिझाने झूठी घोषणाओं की बेशर्म भरमार।।
 
अवसरवादी गठजोड़ों की ख़बरें, अंतरघातों से डरे सब दल।
कैसे भी सत्ता हथियाने, घाघ राजनीति की चहल-पहल।।
 
बस ऐसी ही डरावनी ख़बरों से भरे हुए सारे अख़बार।
मन-मसोसकर सुबह-सुबह पढ़ना पड़ता है हर बार।।
 
कहीं-कहीं मिल जाती है मन बहलाने की ख़बरें।
खेलों में जीतों की, स्वर्ण-रजत पदकों के इने-गिने सेहरे।।
 
रुकी योजनाओं के पूरा होने की, नए निर्माणों की।
सफल अंतरराष्ट्रीय सौदों की, सेना को मिले दक्ष विमानों की।।
 
नई प्रतिभाओं की उपलब्धियों की, इसरो के गौरवमय चमत्कारों की।
चौकन्ने शासन के नित नव सामाजिक सरोकारों की।।
 
दिनभर विचलित रहता है मन, थोड़ी सी ख़ुशी, अधिक संभ्रम।
विचलित करती ख़बरों के आगे, सुखमय ख़बरें हैं कितनी कम।।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

एपीजे अब्दुल कलाम के बारे में 11 खास बातें जानिए...