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जब बूंदें बनती हैं अल्फाज, पढ़िए मशहूर शायरों की कलम से बारिश पर शायरी

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WD Feature Desk

, शुक्रवार, 16 मई 2025 (13:59 IST)
shayari on barish: बारिश... यह सिर्फ पानी की बूंदों का धरती पर गिरना नहीं, बल्कि भावनाओं का एक ऐसा सैलाब है जो हर दिल को छू लेता है। तपती गर्मी के बाद जब सावन की पहली फुहारें पड़ती हैं, तो मिट्टी से उठती सोंधी खुशबू हो या बादलों की गरज, हर चीज़ एक अलग ही जादू बिखेरती है। यह वो मौसम है जब प्रकृति अपनी सबसे खूबसूरत छटा बिखेरती है, और इंसान का दिल भी खुशी, उदासी, रोमांस और यादों के अलग-अलग रंगों से सराबोर हो जाता है। यही कारण है कि बारिश का मौसम हमेशा से शायरों, कवियों और गीतकारों का पसंदीदा विषय रहा है। उनकी कलम से निकलीं ये बूंदे अल्फाज़ बनकर दिल में उतर जाती हैं। आइए, जानते हैं मशहूर शायरों ने बारिश के मौसम पर क्या कुछ कहा है:

याद आई वो पहली बारिश
जब तुझे एक नज़र देखा था
- नासिर काज़मी

 
उस ने बारिश में भी खिड़की खोल के देखा नहीं
भीगने वालों को कल क्या क्या परेशानी हुई
- जमाल एहसानी

 

याद आई वो पहली बारिश
जब तुझे एक नज़र देखा था
- नासिर काज़मी

 
उस ने बारिश में भी खिड़की खोल के देखा नहीं
भीगने वालों को कल क्या क्या परेशानी हुई
- जमाल एहसानी

शायद कोई ख्वाहिश...
शायद कोई ख्वाहिश रोती रहती है,
मेरे अन्दर बारिश होती रहती है
- अहमद फ़राज़

धूप सा रंग है और खुद है वो छाँवो जैसा
उसकी पायल में बरसात का मौसम छनके
- क़तील शिफ़ाई

उस को आना था...
उस को आना था कि वो मुझ को बुलाता था कहीं
रात भर बारिश थी उस का रात भर पैग़ाम था
- ज़फ़र इक़बाल

 
टूट पड़ती थीं घटाएँ जिन की आँखें देख कर
वो भरी बरसात में तरसे हैं पानी के लिए
- सज्जाद बाक़र रिज़वी

वो अब क्या ख़ाक आए...
वो अब क्या ख़ाक आए हाए क़िस्मत में तरसना था
तुझे ऐ अब्र-ए-रहमत आज ही इतना बरसना था
- कैफ़ी हैदराबादी

 
साथ बारिश में लिए फिरते हो उस को 'अंजुम'
तुम ने इस शहर में क्या आग लगानी है कोई
- अंजुम सलीमी

भीगी मिट्टी की महक...
भीगी मिट्टी की महक प्यास बढ़ा देती है
दर्द बरसात की बूँदों में बसा करता है
- मरग़ूब अली

 
बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने
किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है
- निदा फ़ाज़ली

टूट पड़ती थीं घटाएँ...
टूट पड़ती थीं घटाएँ जिन की आँखें देख कर
वो भरी बरसात में तरसे हैं पानी के लिए
- सज्जाद बाक़र रिज़वी

 
तमाम रात नहाया था शहर बारिश में
वो रंग उतर ही गए जो उतरने वाले थे
- जमाल एहसानी

कच्ची दीवारों को...
कच्ची दीवारों को पानी की लहर काट गई
पहली बारिश ही ने बरसात की ढाया है मुझे
- ज़ुबैर रिज़वी

 
घटा देख कर ख़ुश हुईं लड़कियाँ
छतों पर खिले फूल बरसात के
- मुनीर नियाज़ी

दूर तक छाए थे बादल...
दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया न था
इस तरह बरसात का मौसम कभी आया न था
- क़तील शिफ़ाई

 
दर-ओ-दीवार पे शक्लें सी बनाने आई
फिर ये बारिश मिरी तंहाई चुराने आई
- कैफ़ भोपाली

बरस रही थी...
बरस रही थी बारिश बाहर
और वो भीग रहा था मुझ में
- नज़ीर क़ैसर

 
अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है
जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की
- परवीन शाकिर

मैं कि काग़ज़ की एक...
मैं कि काग़ज़ की एक कश्ती हूँ
पहली बारिश ही आखिरी है मुझे
- तहज़ीब हाफ़ी

 
मैं चुप कराता हूँ हर शब उमड़ती बारिश को
मगर ये रोज़ गई बात छेड़ देती है
- गुलज़ार

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