तुम, सचमुच महान हो शिल्पकार- तुम्हारे हाथ नहीं दुलारते बच्चों को न ही गूंथते हैं फूल अर्द्धांगिनी के केशों में बस, उलझे रहते हैं 'ताज' बनाने में- और/ बाद में फेंक दिए जाते हैं काटकर तब भी/ आखिर क्यों नहीं कम होता तुम्हारा 'ताज' के प्रति अनुराग?