सहमी हुई थी यह जमीन
सहमा था सारा आसमां
जीवन के इस मोड़ पर
छाई गहरी खामोशियां।।
इस हादसे की गवाह
थी भारत की सरजमीं
मातृभूमि की रक्षा में
छोड़ी ना थी कोई कमी।।
छीन लिया उस जालिम ने
मेरी मां से उसका अभिमान
राक्षस के रूप में था, हे प्रभु
मेरे ही जैसा एक इंसान।।
गम का सागर था गहरा
डूबा था जिसमें मेरा परिवार
देश के लिए हुआ था शहीद
इस बात का था उन्हें अभिमान।।
इस हादसे को देकर अंजाम
क्या हुआ उस जालिम को नसीब
क्या जीत ली उसने ये जंग
या हुआ वो, ऐ खुदा, तेरी जन्नत में शरीक।।
मिलता नहीं अवसर यह आसानी से
कि कर सके इंसान का रूप धारण
फिर क्यों यह चलता अनैतिकता की राह पर
और बन जाता तबाही, दुख-दर्द का कारण।।
हे प्रभु, यही होती है
हर सैनिक की कामना
कि सरहदों पर ना हो
इंसानों का इंसानों से सामना।।
हे ईश्वर, कब आएगा वो सवेरा
जिसका है सबको इंतजार
कब हटेगा अराजकता का अंधेरा
और होगा इंसानों में प्यार बेशुमार।।