बस इसके आगे, थोड़ी ही और आगे एक बात कहना चाहते हैं हम,
बस बहुत हो चुका सत्ता स्वार्थ की ख़ातिर दोनों देशों की जनता के साथ छल,
अब तो दोनों ओर के राष्ट्राध्यक्ष लंगोट-जांघिया पहन कर उतर जाओ लाल माटी में, और दिखा दो अपना बल
विगत सात दशकों से तो, हुआ नहीं इसका हल
बस मां भारती पर मस्तक न्यौछावर करता सैन्य बल
तो दूसरी ऒर मादरे वतन पाकिस्तान की ख़िदमत में तैनात हैं उनका दल
सम्प्रति संलग्न चीन, बांग्लादेश, श्रीलंका आदि-आदि की भी समस्या
इनका सामना करने को भी बस रक्षातंत्र की तपस्या
लेकिन, किंतु, परंतु परम सत्य तो यही है कि, कुर्सी बचाने के प्रयास में, जनता को पहना दी वर्दी
अब तुम हो गए फौजी, सहो तुम सरहद पर पावस, घाम और सर्दी
जब-जब अपने-अपने स्वामियों, आकाओं के संकेत पर, इशारे पर दोनों देशों के वीर जवान, जांबाज़ सिपाही अग्रसर हो अपने क़दम बढ़ाएं,
बस तभी रक्षा तंत्र के आगे राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय राजनीति लिए सीज़ फायर आ जाएं
तो भैया अब तो ऐसी राजनीति से बाज़ आ जाओ हुक्मरानों,
हे लोकतंत्र के कर्णधारों! हे जम्हूरियत के पैरोकारों राष्ट्र की सम्पन्नता हेतु, मुल्क की खुशहाली के लिए कोई सम्यक मार्ग निकालो। कोई पुख़्ता रास्ता तानो।
नहीं तो अनगिनत नौनिहालों के लहू से पटती रहेगी वसुंधरा,
और सत्तर साल तो क्या, हम पाएंगे सात सौ साल उपरांत भी देश का हाल नहीं सुधरा
हमारे सैनिक उच्चारेंगे वन्दे मातरम्, भारत माता की जय, हर-हर महादेव, जय-जय सियाराम
उनका नारा-ए-तदबीर अल्लाहो अक़बर, नारा-ए-रिसालत या रसूल अल्लाह से हो जाएगा काम
लेकिन परम सत्य जो होगा वो तो इससे बढ़कर होगा
अब जो भी निर्णय होगा, वो दुर्घुष युद्धों की विजय से नहीं, विश्व कीर्तिमान पुस्तकों में आ जाने से नहीं, बल्कि राजनीति की अक्ल ठिकाने आ जाने से होगा
पूछता है 'भानु' भावनात्मक धरातल पर राष्ट्रभक्ति के नाम पर कब तक केवल और केवल हमारे नौनिहाल ही खेत रहते आएंगे ??
अरे जिस दिन वीर हेमराज- सुधाकर के मस्तक मुआवजा देने लग गए ना राजनीति को, उस दिन स्वमेव सियासत के होश ठिकाने लग जाएंगे।
मान्यवरों ! ध्यान धरों- 'ये सिर्फ़ 'भानु' के ह्रदय से उपजी आशु कविता नहीं है,
जब तक जियो और जीने दो का, विश्व बंधुत्व का मार्ग सभी देश नहीं अपनाएंगे,
तब तक तो राष्ट्रीय ध्वजों के 'भानु' नित निर्माण बढ़ते जाएंगे।