सत्ता बदल गई है आवाजें भी, चेहरे भी शब्दनाद भी, शंखनाद भी सत्ता के गलियारे में नए दमकते चेहरों की आमद हुई है हर सत्ता कुछ प्रार्थनाओं के तीर्थ में ही सपनों को यथार्थ बना पाती हैं लेकिन देहरी से बाहर फेंक दी जाती हैं जब प्रार्थनाएं तो उन्हें आहों का गोला बनने में भी समय कहां लगता है सत्ताएं जब अच्छे दिनों की बातें करती हैं मन की कंपन भी उत्साह से बढ़ती है आगे घर के सामने के पेड़ से झर चुके पत्ते भी जी उठना चाहते हैं फिर से डरा मन झूमने लगता है उम्मीदों के भरे-भरे बादलों से पर औरतें अच्छे दिनों के वादे से सहरती भी हैं दिन जो भी हों, बस, भरोसा और इज्जत बनाए रखें चूल्हे की रोटी मन की शांति फरेब से मुक्ति आसमान का एक टुकड़ा मुट्ठी में भर चांद से बचपन की कहानी कह सकने और मारे जाने की धमकी से बची रहे अगर मजबूर औरत की मजबूती तो अच्छे दिन दूर कहां उम्मीदों से भरे दिन कितने अच्छे होते हैं दिन।