वह करती है कोशिश अपनी मुट्ठी में कैद करने की बरसात की बूँदों को।चाहती है आर्द्र होकर इनसे सूखापन जिंदगी काकहीं, कभी तो नम हो जाए। वह सुबह-सुबहपत्तों पर पड़ेओस के कणों को देखकर सोचती हैकहीं, कभी तोइनकीठंडक हृदय की परतों पर पड़कर, छनकरदूर करेमन की जलन।वह छानती हैधूप की किरणों मेंअपने सुख-दुख के कणऔर बीनती हैसुखों के कंकड़ उन कंकड़ों को भी वहछिटका देती है दूरकि, नन्ही चिड़ियाआस लगाए बैठी हैऔर देख रही हैउसके कणों को टुकुर-टुकर। कविता
रोशनी का आलोक देकर
रचती है एक नई दुनिया
हमारे अपने लिए।
चीजें
अचानक दिखने लगती हैं
किसी दूसरे रंग में रंगी
नग्न सच्चाइयों को
सहने के लिए
जरूरत तो पड़ती ही है
किसी एक रंग की
इसके नीचे
इसके साथ
हम देख सकते हैं
खुद को।
कविता
कोई एतराज नहीं करती।
हम देख पाएँ तब भी
हम न देख पाएँ तब भी
यह तो बस
पैरों तले बिछे
रास्ते को
पहचानने में
मदद करती है और
अंतहीन यात्रा को
बना देती है
रंगों से रंगीन।
साभार : अक्षरम् संगोष्ठी