कहाँ आ पहुँचे, बटोही !साँप का तो यह शहर है,कहाँ खोजोगेबसेरा ?ब्याल विषघर हर डगर है !नाग-कन्यासुंदरी है,चंचला ! मन-मोहनी है !प्रणय की प्रयासी, वियोगिनीमानिनी ! उन्मादिनी है !मधु प्रणय कीरागिनी क्याबीन पर तुम बजा सकते ?विरह की पीड़ासुरों मेंताल-लय पर सजा सकते ?
शरण-स्थल
मिल सकेगा,
छरहरी बावली है !
नवयौवना यह
द्रौपदी-सी श्यामली है!
नाग-कन्या के इशारे
राज-सत्ता चल रही है,
नाग-राजा
है विलासी !
आग घर-घर जल रही है।
साभार : अक्षरा