जंगल में रातऔर धाँय धाँय गोलियाँकौन सुनें चीख भरी चिड़ियों की बोलियाँ।जंगल जो थाझँगुर गान से पगा हुआ। रह गया अचानकठिठका ठगा ठगा हुआ। एक परत भय कीऊपर जमी फुनगियों परनीचे कुछ रक्त की रंगोलियाँ।नन्हे वन-ग्राम चकितसूखे पत्तों जैसे काँपते।साँस टँगी है, लेकिन कान खड़ेखून भरी आँधी को नापते।ढिबरी गुल द्वार बंदमाताएँ अड़ा रहीं बच्चों के मुख पर हथेलियाँ।पहले तो पशुआदमखोर हुआ करता था। बस्ती में घुसते हीशोर हुआ करता था।
अब तो कुछ आदम ही
यूँ आदमखोर हुए
हतप्रभ हैं पशुओं की टोलियाँ।
जंगल में रात
और धाँय धाँय गोलियाँ।
साभार : अक्षरा