ओ मनचीते ढाई आखरकहाँ खो गए राह दिखाकर?तुम्हें खोजते जीवन बीताफिर भी मैं रीते का रीता ।क्या पाओगे मुझे सताकरओ मनचीते ढाई आखर ।अभी यहाँ थे, यहाँ नहीं होजहाँ-जहाँ थे वहाँ नहीं हो ।कहाँ सो गए मुझे जगाकरओ मनचीते ढाई आखर ।तुम राई हो, तुम हो पर्वततुम आखेटक, तुम ही आहत ।
तुम ही बूँद हो, तुम ही सागर
ओ मनचीते ढाई आखर
कहाँ खो गए राह दिखाकर?
साभार : अक्षरा