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तू चमकती धूप-सी जब

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हमें फॉलो करें चमकती धूपसी जब ग़ज़ल  योगेंद्र दत्त शर्मा
योगेंद्र दत्त शर्मा
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शांत सोई झील सहसा क्षुब्ध सागर हो गई,
एक नन्ही बूँद से ग़लती सरासर हो गई।

जो कहानी सिर्फ़ तेरे और मेरे बीच थी,
एक छोटी भूल से सब पर उजागर हो गई।

छू लिया था धूल ने चुपचाप तेरे पाँव को,
और तेरे पाँव में मेहँदी,महावर हो गई।

वह हवा घर से चली थी नापने आकाश को,
पर ठिठककर रुक गई, तुझ पर निछावर हो गई।

तू चमकती धूप-सी जब आ गई मेरे निकट,
मेरी परछाईं तेरे क़द के बराबर हो गई।

साभार : समकालीन साहित्य समाचार

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