स्नेहा काळे
फूल कभी सोचता नहीं
मैं कहाँ हूँ?
नहीं कभी सोचता मैं
कौन सा फूल हूँ?
क्या धर्म, क्या भेद, क्या जात
फूल पहचानता सिर्फ एक मानव जात
सदा सभी को प्यार देता रहता
आँखों को ठंडक और मन को देता
खुशबू है।
हे मानव
अगर तू फूल की तरह
बन जाता
सारी दुनिया में सिर्फ
निसंदेह, निस्वार्थ मुस्कान ही फैलाता
आतंकवाद का नामोनिशान मिट जाता।