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मैंने अपने आँगन में गुलाब लगाए

निर्मला पुतुल

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मैंने अपने आँगन में गुलाब लगाए

इस उम्मीद से कि उसमें फूल खिलेंगे

लेकिन अफसोस की उसमें काँटे ही निकले

मैं सिंचती रोज़ सुबह शाम

और देखती रही उसका तेज़ी से बढ़ना।

वह तेजी से बढ़ा भी

पर उसमें फूल नहीं आए

वो फूल जिससे मेरे सपने जुड़े थे

जिससे मैं जुड़ी थी

पर लंबी प्रतीक्षा के बाद भी

उसमें फूल का नहीं आना

मेरे सपनों का मर जाना था।

एक दिन लगा कि मैं

इसे उखाड़कर फेंक दूँ

और इसकी जगह दूसरा फूल लगा दूँ

पर सोचती हूँ बार-बार उखाड़कर फेंक देने

और उसकी जगह नए फूल लगा देने से

क्या मेरी जिंदगी के सारे काँटे निकल जाएँगे?

हक़ीकत तो यह है कि

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चाहे जितने फूल बदल दें हम

लेकिन कुछ फूल की नियति ही ऐसी होती है

जो फूल की जगह काँटे लेकर आते हैं

शायद मेरे आँगन में लगा गुलाब भी

कुछ ऐसा ही मेरी जिंदगी के लिए।

साभार : वागर्थ

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