हरीश निगम
तितली के दिन फूलों के दिन,
रंग-बिरंगी भूलों के दिन।
आँचल उड़े बजे हैं कंगन
टूट रहे हैं सारे बंधन।
भूले सभी उसूलों के दिन!
यूँ ही हँसे कभी मुस्कराए
आँखों इन्द्रधनुष उग आए।
फिर सपनों के, झूलों के दिन!
कुछ खट्टी कुछ मीटी टीसें
बड़े दिनों में फली अशीषें
भाए आज बबूलों के दिन।