याद आता है गर्मियों की छुटि्टयों में मामा के गाँव जाना उस गाँव में सँकरी गलियों और खेतों का सुंदर नजारा थापूरे दिन करते थे धमाचौकड़ी नहीं कोई रोकने वाला थारात में नानी की कहानियाँ सुनकर उन छुट्टियों को गुजारा थाकहाँ आ गए इस जवानी की दलदल में हाय वो बचपन कितना प्यारा था।ठंड के दिनों में देर तक रजाई में दुबके रहनाजल्दी उठकर स्कूल जाना किसी को न गवारा थामाँ का प्यार से कहना स्कूल जाओगे तो बड़े आदमी बनोगेमाँ ने आँखों में अपने बेटे के भविष्य का सपना सँवारा थाहाय वो बचपन कितना प्यारा था।
बगीचों में दोस्तों के साथ आम चुराकर खाना
पेड़ों से गिरने पर चोट लेकर घर आना
पापा की डाँट से हर वक्त माँ ने ही बचाया था
चोट पर मरहम लगाती उस माँ की ममता का अहसास कितना प्यारा था
कहाँ आ गए इस जवानी की दलदल में हाय वो बचपन कितना प्यारा था।
तितलियों को पकड़ने दौड़ा करते थे
खिलौनों के टूटने पर रोया करते थे
अब तो एक आँसू भी रूसवा कर जाता है
तब तो दिल खोल कर रोया करते थे
घर में सबसे छोटा मै सबका कितना दुलारा था
कहाँ आ गए इस जवानी की दलदल में हाय वो बचपन कितना प्यारा था।