दिसंबर है, तकिया नहीं है,
तकिया नहीं है तो कोई गुनाह भी नहीं है,
गुनाह नहीं है तो सचमुच पनाह नहीं है,
दिसंबर ही देता है पनाह प्रेम को
प्रेमपूर्वक
और करता है आगाह
कि आ रही है जनवरी एक बार फिर
पहनकर परिधान नए-नए ख़ून सने
संभलकर बढ़ाओ क़दम
कि आती ही होगी सनसनीखेज ख़बर
वसंत की।