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किरणों के उजाले में धड़कता ग्रामीण सौंदर्य

फोटोग्राफर-कहानीकार मनोहर काजल से खास बातचीत

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रवींद्र व्यास

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यदि आँखों में रोशनी और पैरों में ताकत रही तो मैं पूरा हिन्दुस्तान घूमकर गाँवों का हर स्पंदन कैमरे में कैद करना चाहूँगा। मैं जितना घूमता हूँ, मुझे उतने नए दृश्य, नए बिंब, लोग और माहौल मिलता है। मन को छू लेने वाले रूप-रंग मिलते हैं। मैं इन पर मुग्ध होता हूँ और इन्हें खूबसूरती से हमेशा-हमेशा के लिए अपने कैमरे में उतार लेता हूँ। यह कहना है ख्यात फोटोग्राफर मनोहर काजल का। वे कहानीकार रहे हैं लेकिन सालों से कैमरा लिए अब उनकी आँखें किसी निश्चल तस्वीर के लिए टुकुर-टुकुर देखती रहती हैं।

पिछले दिनों वे नितांत निजी यात्रा पर कुछ घंटों के लिए इंदौर आए थे। इसी बीच उन्होंने नईदुनिया इंदौर सिटी के लिए बातचीत की। वे कहते हैं, सूर्य की किरणों के बिना मेरी कला का कोई अस्तित्व नहीं। मेरे खींचे गए फोटो को सुबह की मुलायम चाँदी जैसी चमकती किरणों से लेकर शाम की सुनहरी किरणें जीवंत और दर्शनीय बनाती हैं।

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उनके चित्रों में दो बातें खास हैं। एक उनमें ग्रामीण जीवन जीवंत है। दूसरा यह कि जीवन सूर्य की सुबह की कोमल उजली किरनों में नहा उठता है या फिर शाम की सुनहरी किरणों में मामूली धूल की तरह। इन धूपों में वे माहौल की धड़कन को पकड़ते हैं और फिर दिख रहे दृश्य से कोई दूसरा अर्थ संप्रेषित करने की खूबसूरत कोशिश करते हैं। वे कहते हैं, मैं बहुधा गाँव के लोगों और उनके जीवन की निर्दोषता और भोलापन दिखाना चाहता हूँ। मैं उस दरिद्रता और अभावग्रस्त जीवन का असली उल्लास अभिव्यक्त करना चाहता हूँ।

श्री काजल पहले एक बेहतरीन कहानीकार थे और उन्होंने कुछ बेहतरीन प्रेम कहानियाँ लिखीं। उनके दो कहानी संग्रह जलपाखी मध्यप्रदेश साहित्य परिषद के सहयोग से प्रकाशित हुआ और फिर इन्कलाब जिंदाबाद। इन्कलाब जिंदाबाद को सुभद्राकुमारी चौहान पुरस्कार मिल चुका है। उनकी कहानियाँ धर्मयुग, कहानी और सारिका में छपीं। उनके कई फोटोग्राफ्स भी।

  सूर्य की किरणों के बिना मेरी कला का कोई अस्तित्व नहीं। मेरे खींचे गए फोटो को सुबह की मुलायम चाँदी जैसी चमकती किरणों से लेकर शाम की सुनहरी किरणें जीवंत और दर्शनीय बनाती हैं।      
उन्हें फोटोग्राफी के लिए कई पुरस्कार मिले। बीस साल पहले 'लेट अस सेव अवर वर्ल्ड' शीर्षक से यूनिसेफ के ग्रीटिंग पर उनका फोटोग्राफ प्रकाशित हुआ था। अपने समय की लोकप्रिय पत्रिका 'धर्मयुग' में कवर पर उनकी खींची गई कई तस्वीरें छपी हैं। 'सेलिब्रेशन एंड मिलेनियम' शीर्षक से उन्हें कोटक कॉम्पिटिशन में एक लाख का पुरस्कार हासिल हुआ।

'हेरिटेज' विषय पर उन्हें इंटरनेशनल फोटोग्राफिक एसोसिएशन लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार मिला। उनकी एक कहानी 'धुआँ' पर फिल्मकार राजदत्त ने फिल्म भी बनाई थी। अपनी कला के बारे में वे कहते हैं कि कला देखकर या तो आह निकलना चाहिए या वाह। कला इन्हीं दो शब्दों के बीच धड़कती है।

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