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घर की याद में चित्रकार बन गया : प्रभु जोशी

अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त मौलिक चित्रकार प्रभु जोशी से मुलाकात

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-माहीमीत

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ख्यात चित्रकार एवं कथाकार प्रभु जोशी के दो चित्रों को अमेरिका एवं अन्य चार राष्ट्रों द्वारा संचालित 'बेस्ट इंटरनेशनल आर्ट गैलरी' का विशेष पुरस्कार दिया गया है। तैलरंग में उनके चित्र 'स्माइल ऑफ चाइल्ड मोनालिसा को पुरस्कृत किया गया है। जलरंग में उनके बनाए एक लैंडस्केप चित्र को भी पुरस्कृत किया गया है। इस दौरान अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चित्रकार पॉवेल ग्लादकोव ने उन्हें मौलिक और विशिष्ट चित्रकार बताया है। ब्रिटेन के प्रसिद्ध जलरंग चित्रकार टेऊ वोर लिंगगार्ड ने उनके बारे में कहा कि 'मैं हैरान हूं कि आप अपने चित्रों में ऐसा 'अनलभ्य' प्रभाव कैसे पैदा किया हैं। इस मौके पर उन्होंने वेबदुनिया से दुरभाष पर विशेष बातचीत की।


माहीमीत- आपने चित्रकारी कब शुरू की थी। पहला चित्र कौन सा बनाया था।

प्रभु जोशी - आठ साल की उम्र में रंगों के साथ मैंने खेलना सीखा था। महाभारत के एक दृश्य जिसमें द्रौपदी को छेड़े जाने पर कीचक की भीम द्वारा धुनाई की जा रही थी, को मैंने उकेरा था। यह दृश्य मेरे मानस पटल में तब आया था जब गांव का एक शातिर लड़का मेरी बहन को सीटी बजाकर तंग कर रहा था। वास्तव में देखा जाए तो सच्चा कलाकार वही होता है जो अपने आसपास घटनाओं को अपनी रचना के जरिए लोगों के सामने लेकर आए।

मेरा यह चित्र पीपलरावां स्थित घर की दीवार पर करीब दो साल तक टंगा रहा। इसके बाद तो जैसे चित्रकारी मेरे दिलों दिमाग में बैठ गई। यही कारण था कि दीवाली पर तरह-तरह के चित्र मैं दीवारों पर बनाता था। इनमें बैल, बकरी, गाय और शेर सहित कई जानवर शामिल होते थे।

माहीमीत- गीतकार गुलजार ने आपके चित्रों के संबंध में प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि आपके सांस लेते पोट्रेट रूह के लैंडस्केप्स है। इसका क्या मतलब है।

प्रभु जोशी - दरअसल यह गुलजार साहब का शायराना अंदाज था। उनका कहना था कि आपके चित्र बहुत जीवंत है। यही कारण है वह देखने वाले की रूह में बस जाते है। यही यथार्थवादी चित्रकारी का नमूना भर है।

माहीमीत- देखा गया है कि आप समीक्षकों की राय से सहमत नहीं रहते। आपको सम्मान मिला है, विरोधी आलोचकों को क्या कहेंगे।

प्रभु जोशी - चिढ़ की कोई बात ही नहीं है। मुझे ऐसे समीक्षकों की राय समझ नहीं आती है जो किसी रचना की साहित्यिक भाषा में अत्यधिक व्याख्या कर देते हैं। इससे कला का तो नुकसान है ही बल्कि उन लोगों के साथ भी धोखा है जो समीक्षकों की राय के आधार पर किसी रचना के प्रति आकर्षित होते हैं।

माहीमीत- प्रीतीश नंदी ने आपको जलरंग का सम्राट बताया है। उनकी इस बात पर आप कितना खरा उतरते हैं।

प्रभु जोशी - देखिए नोबेल पुरस्कार विजेता साहित्यकार ग्रेब्रिएल गार्सिया माक्र्वेज ने साहित्य के संदर्भ में कहा था कि -एक हाथी आसमान में उड़ रहा था और हजारों हाथी आसमान में उड़ रहे थे। पहला वाक्य तेलरंग और दूसरा वाक्य जलरंग पर लागू होता है। इसी सोच के साथ मैंने जलरंग पर अपना फोकस अधिक किया। ऐसे में यदि इसको सम्मान मिलता है तो यह मेरे लिए क्या हर कलाकार के लिए अच्छी बात होगी। मेरा पुरस्कार हर कलाकार का सम्मान है।

माहीमीत- आपके चित्रों से आदमी गायब है। महज जगहें मौजूद है। इसकी कोई खास वजह।

प्रभु जोशी - बरसों पहले जब मैं अपना घर छोड़कर देवास आ गया तो सालों तक मैं घर नहीं गया। मैं यही सोचता था कि कुछ करके और कुछ बनके ही घर जाउंगा। मैं अपनी जिद पर अडिग तो था लेकिन मुझे घर, गलियों, रास्तों और लोगों की याद बहुत आती थी। बावजूद मैं घर नहीं गया। मुझे उन सब की याद रह-रहकर आती थी। यही कारण है कि जब मैं चित्र बनाने लगा तो वह सब जगह तो दिखाई दी लेकिन उनसे आदमी हमेशा नदारद रहा।

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