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पेंटिंग हो या कविता हर विधा में खुद को ही निखारती हूं... इरा टाक

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स्मृति आदित्य

रंग, तूलिका, कलम, कविता, कहानी, तस्वीरें, फिल्म और एक भीनी सी मुस्कान...इन सबको मिलाकर बनी है इरा। इरा टाक। एक बहुआयामी नाम जो टीवी की दुनिया से होते हुए सोशल मीडिया के झरोखे से झांका और आज कला के क्षेत्र में अपनी पहचान स्थापित कर चुका है। 
इरा जब चित्र उकेरने का सोचती है तो कविताएं पन्नों पर उतरती है, जब वह कविता लिखने बैठती है तो रंग कैनवास पर सजने लगते हैं... जब वह किसी तस्वीर को कैद कर ही होती है तो फिल्म बन जाती है और जब वह फिल्म बनाने निकल‍ती है तो उनके चित्र कहानी बयां करने लगते हैं। उनके चित्रों में कविताएं गाती हैं और कविताओं में रंग मुस्कुराते हैं। 
 
मूल रूप से जयपुर निवासी इरा की शिक्षा उत्तरप्रदेश में संपन्न हुई है। इन दिनों मुंबई उनकी कला का साक्षी बन रहा है। इरा का व्यक्तित्व बहुरंगी हैं। वे बेहतरीन लेखिका भी है और पैनी दृष्टि की फिल्मकार भी। उनके दो काव्य संग्रह 'अनछुआ ख्वाब' और 'मेरे प्रिय' आ चुके हैं। 2 कहानी संग्रह और 1 उपन्यास बहुप्रतीक्षित हैं। 2012 से अब तक छह एकल प्रदर्शनियां कर चुकी हैं। इसी वर्ष इरा ने अपनी ही कहानियों पर 3 लघु फिल्में बनाई हैं। पेश है उनकी रचनात्मक यात्रा पर एक मुलाकात ... 
 
 
•रंगों की दुनिया में आगमन कैसे हुआ ?
 
इरा- रंगों की दुनिया में आना शायद मेरा प्रारब्ध था। मैंने कभी इस दुनिया के बारे में नहीं सोचा था। मैं कभी-कभी शौकिया साल छह महीने में मैं कुछ चित्र बना लेती थी। बचपन में मेरी हैंड राइटिंग और आर्ट दोनों ही बहुत ख़राब थे फिर साइंस की पढाई की तो बॉटनी-जूलॉजी में बहुत सारे डायग्राम बनाते-बनाते स्केचिंग ठीक-ठाक हो गई थी। साथ वाले स्टूडेंट्स की अच्छी राइटिंग देख मैंने भी अपनी राइटिंग बेहतर कर ली। सीखने की प्रबल इच्छा मेरी सबसे बड़ी ताकत है। मेरे मन की छटपटाहट मुझे रंगों की और खीच ले गई। मैं अपने हिसाब से अपनी दुनिया रंगना चाहती थी। मैंने 2011 में फेसबुक ज्वाइन किया। अपनी बनाई हुई कुछ पेंटिंग्स फेसबुक पर डाली। एक अमेरिकन रोबर्ट कोल्ले ला की उन पर नज़र पड़ी। उसने उन पर तारीफों के इतने पुराण लिख दिए कि मुझे चित्रकार होने का गुमान हो गया। रॉबर्ट ने मेरे कुछ चित्र अपनी वेबसाइट यूटोपियन पर डाले और कुछ ही दिनों में ही रॉबर्ट ने मुझे बताया कि एक अमेरिकन महिला मेरी एक पेंटिंग खरीदना चाहती है। उस पेंटिंग से मिले 250 $ ने मुझे चित्रकार बना दिया। उसके बाद मैंने रात-दिन चित्र बनाने शुरू किए। जलरंग (watercolor)मेरा माध्यम था और फ़रवरी 2012 में मैंने अपनी पहली एकल प्रदर्शनी भी प्लान कर ली। रंग और ब्रश जूनून की तरह मुझ पर छा गए और तब से अब तक मैंने छह एकल और कई ग्रुप प्रदर्शिनियां कर लीं। 2013-2014 में मेरा एक आर्टवर्क ललित कला अकादमी द्वारा नेशनल प्रदर्शनी के लिए चयनित किया गया था। 
 
•अपने पहले आर्ट वर्क 'समुद्री चिडिया' के बारे में विस्तार से बताएं ...
 
इरा- फेसबुक पर मैंने एक कविता पढ़ी थी 'स्टॉर्म पेट्रेल' उसके बारे में जानने के लिए मैंने गूगल किया तो एक खूबसूरत समुद्री चिड़िया का चित्र नज़र आए। मेरी अनुभूतियां मुझे रंगने के लिए उकसाने लगी। मैंने उस चिड़िया का चित्र बनाया और कवि को क्रेडिट देते हुए फेसबुक पर डाला। वही चिड़िया थी जिसकी वजह से मैंने रंगों की उड़ान भरी। यह स्ट्रोम पेट्रेल अमेरिका के नेव्योर्क में 250 $ में सेल हुआ था। इसका साइज़ 14x10 इंच था और ये जलरंग से बनी थी। 

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•शब्दों और रंगों का सुंदर संयोजन कब और कैसे शुरू हुआ? पेंटिंग के साथ लेखन आपकी प्रिय विधा कब बना? 
 
इरा - शब्दों और रंगों का साथ लगभग साथ-साथ ही शुरू हुआ। 2011 से, उससे पहले मैं एक टीवी पत्रकार थी पर मेरे मन को बंधन पसंद नहीं था।  मैं अपने मन का काम करना चाहती थी। यही तलाश मुझे इस और खीच लाई। मैं शुरू से लेखक बनाना चाहती थी पर किस्मत ने चित्रकार बना दिया। 2012 अक्टूबर में मेरी पहली किताब काव्य संग्रह 'अनछुआ ख्वाब' आई। उसके बाद मैंने कहानियां लिखना शुरू किया जो मेरी खुशकिस्मती से अच्छी पत्र- पत्रिकाओं में छपीं। मैं शब्दों और रंगों को बराबर समय देती हूं। जब रंगती हूं तब सिर्फ रंगती हूं और जब लिखती हूं  तो सिर्फ लिखती हूं।  यह रंग और शब्द मेरी दुनिया को मेरे हिसाब से सजाने में मदद करते हैं। मुझे इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि कोई मुझे लेखक माने या चित्रकार या चाहे तो कुछ नहीं माने। मेरा सृजन मेरी खुद को पहचानने की यात्रा है। और इस यात्रा में कई लोगों ने, पाठकों ने मेरा उत्साह बढाया, प्रेम और साथ दिया। मेरे चित्रों के खरीदारों ने हमेशा मदद की और नए चित्र बनाने को प्रेरित किया। जीवनयापन के लिए धन भी तो ज़रूरी है न।  
 
•जब उदास होती हैं तो तूलिका पहले उठाती हैं या कलम? ज्यादा सुकून कहां मिलता है?
 
इरा -उदासी में सिर्फ कविताएं उतरती हैं ऊपर से। लिखना मेरे जिंदा रहने की वजह है। जो अन्दर है उसे बाहर न निकाला जाए तो वो अन्दर से खोखला कर देता है। जब मन शांत होता है तभी कहानियां या पेंटिंग कर पाती हूं। यह कहना मुश्किल है कि ज्यादा सुकून किसमें मिलता है, लिखना और पेंटिंग दोनों मेरे लिए ध्यान की अवस्था है। जब मैं सिर्फ खुद और उस ताकत के साथ होती हूं जो मुझे रंगने या लिखने को प्रेरित करती है। मैंने देखा है जब कभी मैं उदास या निराश होने लगती हूं मेरा काम चाहे वो पेंटिंग हो लिखना हो या फिल्म मेकिंग मुझे उबार लेते हैं।  मेरा काम मुझे उदास होने के लिए ज्यादा देर अकेला नहीं छोड़ता। 
 
•और जब खुश होती हैं तब कैनवास पर रंग पहले सजते हैं या कविताएं पन्नों पर उतरती हैं?
 
इरा - ख़ुशी मुझे और ज्यादा काम करने को प्रेरणा देती है। आजकल कविताएं लिखना बंद सा है। कविताएं अचानक उतरती हैं, बस में सफर करते हुए, बीमार मां को नहलाते हुए, मछलियां सुखाती औरतों को देखते हुए..... खुश होती हूं तो चाहे कोई भी काम हो खुद को 100 % झोंक देती हूं। 
 
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•आपने महिलाओं की समस्याओं पर एक कलेक्शन तैयार किया है, उसके बारे में विस्तार से बताएं। 
 
इरा - मैं खुद एक महिला हूं तो मैंने उनकी तकलीफों को करीब से जाना समझा है। मैंने 2012 में भी एक सीरीज तैयार की थी, जिसमें कन्या भ्रूण हत्या, बलात्कार, स्त्री का मानसिक और शारीरिक शोषण, बच्चियों का शोषण जैसे मुद्दे उठाए थे और इस वर्ष मैंने पर्दा -दा वेइलेड सगा सीरीज बनाए हैं ।इसमें हर स्त्री के चहरे पर एक झीना सा पर्दा है, यह पर्दा उन उनकी उन्हीं कहानियों और दर्द को दिखाता है जो वो किसी से भी साझा नहीं कर पाती और उस परदे के साथ जीती हैं। एक watercolor से बनाई पेंटिंग 'इन दा सर्च ऑफ़ डिग्निटी' में स्त्री अंधेरे से बाहर आ रही है वो खून से लथपथ है और समाज के खुद की पहचान पाने को जान की बाजी लगाने को तैयार है।  
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•क्या आप मानती हैं कि औरतों के लिए आज का समाज आसान हुआ है या चुनौतियां बदल गई है समाज वही है....
 
इरा - मुझे महिलाओं को मजबूत और सशक्त देखना पसंद है। समाज बदला है, लड़कियों ने खुद को साबित किया है पर अब भी वह एक अजूबा हैं, उनके बराबरी का हक बचपन से ही नहीं मिलता तो वह कैसे पनप पाएंगी। अभी भी लड़कियों का एक बड़ा वर्ग पिछड़ा हुआ है। उनके जीवन का उदेश्य केवल घर चलाना है।मैंने  एसिड से चेहरा जली हुई लड़की को करीब से देखा...मन सिहर उठा..कितने क्रूर वहशी होते होंगे जो इस तरह तेज़ाब डाल कर लड़कियों की ज़िंदगी खराब करते हैं...मुझे याद है जब मैं ग्यारहवीं में पढ़ती थी तब लड़कों का कॉलेज, ट्यूशन जाती लड़कियों का पीछा करना आम बात थी। कहीं भी जाओ वह पीछा करते थे एक खूंखार साए की तरह... कई बार फब्तियां कसते हुए और कई बार चुपचाप।  
 
यह सब देख और अखबार में 'इंकार करने पर लड़की पर एसिड फेंका', ' बलात्कार',अपहरण की खबरें पढ़ते हुए मन में इन तथाकथित जानवरों के लिए भय और नफरत बढ़ती गई। जब लड़कियों की पनपने की उम्र होती है तब उन्हें इस डर के साए में जीना पड़ता है...दबे-डरे-छुपे हुए...यह दहशत न होती तो लड़कियां अपना बचपन, टीनएज, जवानी पूरी तरह जी पाती...घूम सकती, अपने सपनों में उन्हें इस डर से कटौती नहीं करनी पड़ती...
 
मुझे अफ़सोस है ऐसे जंगल समाज में पैदा होने का...जहां  लड़कियां एक ऑब्जेक्ट हैं और उनके इंकार की सजा- तेज़ाब, बलात्कार और हत्या है। लड़कियों में जब यह भावना आएगी कि उनकी पहचान उनके पिता, पति, भाई या बेटे के नाम से न हो कर खुद अपने नाम से हो तब वो सही मायने में तरक्की कर पाएंगी और इसमें परिवार का सहयोग अपेक्षित है। 
 
•पिछले दिनों पाक कलाकारों के भारत में काम करने को लेकर जोर-शोर से बहस चली, आप स्वयं को इस मुद्दे पर कहां खड़ा पाती हैं? 
 
इरा - मेरे ख्याल से यह सीमाएं नफरत का कारोबार करती हैं। आम आदमी कभी युद्ध नहीं चाहता यह सब हुक्मरानों का काम है। कलाकार को  कहीं भी और किसी भी देश में जा कर बेख़ौफ़ काम कर सकने की आज़ादी होनी चाहिए। मेरी समझ में यह गणित नहीं आता। मेरे लिए देश, मज़हब,जाति से पहले इंसानियत है और अब इंसानियत ही सबसे पिछड़ गई है, धर्म सबसे ऊपर हो गया है और धर्म का कारोबार हो रहा है। 
 
 
•जब रंगों और शब्दों की दुनिया खामोश होती है तब उन एकांत सुहाने लम्हों में आप क्या करती हैं?
 
इरा - जब मन में कोई विचार नहीं आता जब खाली मन को प्रकृति की सुंदरता और शांति से भरती हूं। किताबें पढ़ती हूं। इसके अलावा मुझे सपने देखने का बहुत शौक है और मेरे ख्वाब हमेशा एक काफिला लेकर आते हैं। मुझे घूमने और फोटोग्राफी करने का बहुत शौक है। लॉन्ग ड्राइव करना बेहद पसंद है। अक्सर मुंबई से जयपुर मैं खुद कार चला कर चली जाती हूं। समंदर के किनारे घूमना, आती-जाती लहरों में अपनी सारी नकारात्मकता बहा देना मुझे अच्छा लगता है। अपने परिवार के साथ वक़्त बिताना, मेरे बेटे विराज से ढेरों बातें करना, अपने पेट् पिकोलो को लंबी वॉक पर ले जाना... .जैसे कई दिलचस्प काम है मेरे एकांत को सुहाने बनाने के लिए। 
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• आपकी शॉर्ट फिल्में बड़ी चर्चित रही है, उनकी मैकिंग हम भी जानना चाहेंगे...कैसे विचार आया ? 
 
इरा - इस साल मैंने तीन शॉर्ट फिल्म बनाई है। जिनकी कहानियां और डायरेक्शन मेरा ही है। पता नहीं कैसे अचानक यह विचार मेरे मन में आ गया। मैं बहुत बेसब्र इंसान हूं जब कोई बात मेरे मन में आ जाती है तो फिर मुझ से इंतज़ार नहीं होता। मैंने दो दिन में अपनी चर्चित कहानी 'flirting Mania' पर स्क्रीनप्ले लिख दिया और चार दिन में शूट किया। यह फिल्म आधे घंटे की है और अभी इसे देश-विदेश के फिल्म फेस्टिवल्स में दिखाया जाएगा। इसका प्रोमो यू-ट्यूब पर उपलब्ध है। यह  आभासी दुनिया में बनते फर्जी रिश्तों की कहानी है जो असल ज़िंदगी पर भारी पड़ने लगते हैं। 
 
दूसरी फिल्म “w-turn” मैंने झारखण्ड के नेतरहाट में पानी वर्कशॉप में बनाई। जो नेशनल अवॉर्ड विजेता श्री राम डाल्टन ने आयोजित की थी। इसमें अराजक होते युवा वर्ग को बेहद काव्यात्मक ढंग से पानी की बचत के महत्व को समझाया है। 5 मिनट की फिल्म में एक भी डायलाग नहीं है, फिल्म का संगीत प्रसिद्ध संगीतकार लेसिली लेविस ने दिया है। 
 
तीसरी फिल्म Even the child knows दो मिनट तेईस सेकंड की है। जो बिना किसी तैयारी के मैंने अचानक बना ली। इस फिल्म में कहानी और डायरेक्शन के साथ कैमरा वर्क भी मेरा है। बच्चे के माध्यम से स्वच्छ भारत का संदेश देती यह फिल्म यू-ट्यूब   पर देखी जा सकती है। मेरे जूनून को पूरा करने में मेरे परिवार और दोस्तों का बहुत बड़ा योगदान है। मेरे पति दुष्यंत फिल्म लेखक और गीतकार है एक दोस्त की तरह मेरे हर सपने में साथ रहते हैं। मेरी फिल्म flirting Mania को भी उन्होंने अपने गीत से सजाया है। 
 
•पेंटिंग, फोटोग्राफी, फिल्म, कहानी, कविता के बाद और कौन सी विधा ऐसी है जहां इरा अपने को आजमाना चाहती हैं? 
 
इरा - कोशिश है इस जीवन में जितना सीख सकूं सीख लूं। हमेशा सीखने को तैयार रहना मेरी सबसे बड़ी ताकत है। नेतरहाट में तीन शॉर्ट फिल्मों में अभिनय भी किया था। अभी एक थिएटर भी किया। बचपन से ही मुझे बोलने में घबराहट होती है ... तो सोचा मन से स्टेज फोबिया निकाल दूं .जो काम यह कुदरत मुझ से करवाना चाहेगी उसके लिए मुझे चुन लेगी। फिलहाल तो यही चाहती हूं कि हर दिन अपने आप को निखार सकूं। अपने हुनर को धार दे सकूं। बाकी अपने परिवार और दोस्तों को वक़्त और प्यार दे सकूं, उनका साथ दे सकूं। ज़िंदगी में जितना प्यार मिल जाए और दे सकें वही असली कमाई है।  
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