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महुआ घटवारिन मेरी भी प्रिय रचना है: पंकज सुबीर

19वें कथा यूके अवॉर्ड से सम्मानित होने पर विशेष बातचीत

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स्मृति आदित्य

पंकज सुबीर, यह नाम हिन्दी साहित्य में भावप्रवण युवा साहित्यकार के रूप में जाना जाता है। ‍पंकज सुबीर ने वर्तमान हिन्दी साहित्य को अपनी खूबसूरत रचनाएं दी है। हाल ही में उन्हें अंतर्राष्ट्रीय 19वें कथा यूके अवॉर्ड से सम्मानित किए जाने की घोषणा की गई है। इस अवसर पर वेबदुनिया ने तत्काल उनसे अनौपचारिक बातचीत की। प्रस्तुत है युवा साहित्यकार पंकज सुबीर से संक्षिप्त दूरभाष साक्षात्कार-

प्रश्न- 'महुआ घटवारिन' मूलत: प्रेम कहानी है? इस सुंदर कहानी की प्रेरणा कहां से मिली?

पंकज- वास्तव में मैं स्वयं कस्बे में रहा हूं। मेरा बचपन वहां बीता। पिताजी के तबादले के बाद मैंने अपनी जमीन को छोड़ने का दर्द, तकलीफ खुद झेली है। दूसरी तरफ रेणु मेरे प्रिय लेखक हैं। उनकी रचनाओं का मुझ पर गहरा प्रभाव है। यही वजह है कि इन दो संयोग ने मुझसे महुआ घटवारिन लिखवा ली। सच कहूं तो महुआ घटवारिन मेरी भी प्रिय रचना है।

प्रश्न - क्या इस कहानी को पाठक आपकी आत्मकथा मान सकता है?

पंकज- जी हां, इस बात पर मेरी आंशिक सहमति है।

प्रश्न -कहानी को एक पंक्ति में कैसे परिभाषित किया जा सकता है?

पंकज- 'यथार्थ' के धरातल से उपजे किसी बीज को जब कल्पना का अभिस्पर्श मिल जाए तो इसी सुंदर सम्मिश्रण को कहानी कह सकते हैं।

प्रश्न - महुआ घटवारिन वस्तुत: प्रेम कथा है। प्रेम को एक पंक्ति में क्या कहेंगे?

पंकज- प्रेम मेरे लिए विस्तार है। अनंत है। एक पंक्ति में उसके लिए कुछ कहना संभव नहीं है फिर भी जो अनुभूति आपको भीतर से खूबसूरत बना दे वही प्रेम है।

प्रश्न- आपने गजलों पर बहुत काम किया है। आप स्वयं बेहतरीन कवि हैं। आपकी नजर में काव्य के सप्तऋषि कौन है? यानी आपके प्रिय कवि या गजलकार कौन है?

पंकज- यह संयोग ही है कि मैंने स्वयं कुछ दिन पूर्व अपने 7 प्रिय कवियों को सूचीबद्ध किया था और आज आपने प्रश्न कर लिया। मेरे प्रिय कवि हैं- गुलजार, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, दुष्यंत कुमार, अदम गोंडवी, दिनेश कुशवाह, कुमार अनुपम।

प्रश्न - और संपूर्णता में साहित्य के चार धाम आप किसे मानते हैं?

पंकज- फणिश्वरनाथ रेणु, अमृता प्रीतम, शरद जोशी और हरिशंकर परसाई।

प्रश्न - कहानी के पंच परमेश्वर भी जानना चाहेंगे...

पंकज- मैंने पहले भी जिक्र किया रेणु को मैं अपना प्रिय लेखक मानता हूं। उनके अलावा जिनकी कहानियां मुझे बेहद पसंद है उनमें भालचन्द्र जोशी, चित्रा मुद्‍गल, मनीषा कुलश्रेष्ठ और अमृता प्रीतम का नाम ले सकते हैं।

प्रश्न- महुआ घटवारिन के लिए यह प्रतिष्ठित अवॉर्ड आपको मिला है, इस सुनहरी उपलब्धि का श्रेय आप किसे देना चाहेंगे?

पंकज- इस प्रश्न पर मेरे जेहन में एक ही नाम आता है वह है दिल्ली के भारत भारद्वाज। वास्तव में इस कहानी को मैंने नईदुनिया के रविवारीय अंक को ध्यान में रखकर लिखा था। लेकिन कहानी लंबी होने पर मुझे कहा गया कि इसे संक्षिप्त कर के प्रेषित कर दीजिए। मेरे लिए वह संभव नहीं था। लिहाजा, इस कहानी को भारत भारद्वाज ने अपनी पत्रिका आधारशीला में प्रकाशित किया।

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तत्पश्चात 'फिर से महुआ घटवारिन' शीर्षक से 'हंस' में इसकी समीक्षा प्रकाशित की। उन दिनों नया ज्ञानोदय का प्रेम महाविशेषांक प्रिंट में जा चुका था। लेकिन रवीन्द्र कालिया जी ने जब 'हंस' में भारत जी की समीक्षा पढ़ी तो उन्होंने वह अंक रूकवा कर फोन पर कहा कि मुझे तुरंत वह कहानी चाहिए। मैंने निवेदन किया कि वह आधारशीला में प्रकाशित हो चुकी है लेकिन वह नहीं माने और फिर ना सिर्फ प्रेम विशेषांक में वह प्रकाशित हुई बल्कि बेस्ट ऑफ ज्ञानोदय में भी यह कहानी शामिल हुई। इसलिए मुझे लगता है भारत भारद्वाज की पारखी नजर का इस कहानी पर पड़ना मेरे लिए शुभ रहा।

प्रश्न- आगामी सृजन के रूप में पाठकों को क्या मिलने वाला है।

पंकज - एक कहानी लिखी है। इन दिनों चर्चा में भी है। जिसमें महात्मा गांधी आज के दौर में यरवदा जेल में है। उनके काल्पनिक संवाद प्रस्तुत किए हैं।

प्रश्न - क्या जरूरी है कि एक लेखक रोज ही कुछ लिखे।

पंकज- जी नहीं, मैं मानता हूं कि कम लिखा जाए लेकिन श्रेष्ठतम लिखा जाए। एक अच्छे लेखक की साल में तीन या चार उत्कृष्ट रचनाएं ही आनी चाहिए।

प्रश्न -आप अपने व्यस्ततम समय में से लिखने के लिए वक्त कैसे निकाल लेते हैं?

पंकज- पहले मुश्किल था जब मैं सीधे कंप्यूटर पर नहीं लिख पाता था अब तो बेहद आसान है। कभी एक घंटा और कभी निरंतर लेखकीय प्रवाह के साथ लिखना आसान हो गया है।

प्रश्न- 'महुआ घटवारिन' के सम्मानित होने पर आपकी विशेष अनुभूति पाठकों तक पहुंचाना चाहते हैं।

पंकज- मेरे लिए यह निश्चित रूप से गौरव का विषय है लेकिन अवॉर्ड से ज्यादा खुशी इस बात की है कि मीडिया ने इस खबर को सुरूचिपूर्ण तरीके से प्रमुखता से प्रस्तुत किया। आमतौर पर यह मान लिया जा‍ता है कि हिन्दी के लेखकों को मीडिया में स्थान नहीं मिलता लेकिन मुझे लगता है अगर सही समय पर सही ढंग से जानकारी पहुंचाई जाए तो मीडिया हिन्दी और हिन्दी के लेखकों के लिए भी रूचि दिखाता है।
समाप्त

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