सुदीप सेन : मैंने 'द टाइम्स' (20 मार्च 1993) के पत्रिका खंड में आपका एक लेख पढ़ा- 'टू कट ए लाँग स्टोरी शॉर्ट'। इनमें आपने पाँच श्रृंखलाई उपन्यास 'द ब्रिज ऑफ द वर्ल्ड' लिखने की योजना बनाई है?
विक्रम सेठ : हाँ, ऐसी योजना थी। कैलिफोर्निया पर केंद्रित अपने पद्यात्मक उपन्यास 'द गोल्डेन गेट' की रचना के तुरंत बाद गद्य में, भारत केंद्रीय पाँच लघु उपन्यासों के सृजन का मेरा विचार था। पचास के दशक से शुरू होकर अंत में मेरी कलम के रुकने तक, ये पाँचों उपन्यास एक अर्धवृत्त बनाते। पूरी दुनिया मेरे ख्याल में, औपनिवेशिक 'राज' की एक पंच श्रंखला होती।
पहली श्रृंखला, 60 के दशक तक, दूसरी सत्तर, तीसरी अस्सी और इसी तरह हमें आगे तक ले जाती।..
सुदीप सेन : क्या आप सचेतन रूप से भारतीय इतिहास को कथा-रूप में ढालने की सोच रहे थे या कि आप ऐसी कहानी कहना चाह रहे थे जो आपको व्यक्तिगत रूप से रुचिकर थी?
विक्रम सेठ : बेशक, दूसरा पक्ष! मेरे ख्याल से किताबें यदि कथानक और चरित्र प्रधान हों तो वे अधिक प्रभावी होती हैं।
सुदीप सेन : जिस किसी नजरिए से देखा जाए,'ए सुटेबल ब्वॉय' विराट है। इसका विशाल आकार लगभग 1400 पृष्ठ और छ: लाख तक शब्द और, इसे लिखने में आपको आठ साल लगे! तथ्य तो यह है कि बिना काट-छाँट के, इसके लगभग दो हजार पृष्ठ होते। क्या आप बता सकते हैं कि इतना बड़ा वृत्तांत कैसे विकसित हुआ?
विक्रम सेठ : नहीं; किताब का पहला भाग लिखते समय मुझे इसका कुछ आभास था। जब मैंने महसूस किया कि इसका फैलाव दूसरे-दूसरे क्षेत्रों की ओर हो रहा है... गाँव-देहात, कलकत्ता, कानून, चर्मोद्योग, दरबारी, जमींदारी, चुनाव आदि- जब मैंने महसूस किया कि मेरे खाके का शिराजा अब बिखर जाएगा। तब मैंने और अधिक अनुसंधानों के जरिए चीजों को पुनर्गठित करना जरूरी समझा और तय किया कि इसके बाद ही बाकी 18 हिस्सों पर काम किया जाए।
सुदीप सेन : जब आप कहते हैं कि इसे लिखने में आपको आठ साल लगे, तो क्या यह माना जाए कि लगातार आठ साल?
विक्रम सेठ : 'लिखने' से मेरा आशय है, लिखने के पूर्व विचार करना और संशोधन।
सुदीप : संवाद और काव्य रूप का प्रयोग-इस ग्रंथ के ये दो तत्व मुझे बहुत ही दिलचस्प लगे हैं। पहला, संवाद का सफल प्रयोग, जो कई सारे उपन्यासकारों के लिए, काफी कठिन माना जाता है, आप में वह बड़ा ही सहज लगता है। इसमें गहरे शोध की जरूरत हुई होगी, जब बाहरी दुनिया की विभिन्न कथन-भंगिमाओं की अवधारणाओं से गुजरना पड़ा होगा, जिनसे आप परिचित या रूबरू होते होंगे?
विक्रम : व्यापक शोध! और बताऊँ कि कोई किताब लिखन में, शोध बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है, इस उपन्यास में यह पहलू बस स्पर्शी भर है। क्योंकि आप नहीं चाहते कि यह कहीं से बोझिल होने का एहसास दे। लेकिन गाँवों में रहना, वहाँ की गलियों उप-पथों पर विचरना, जहाँ मेरी बुआजी रही हैं, पुरानी दिल्ली की जामा मस्जिद के आसपास, जहाँ राजदरबारी परिवार रहते रहे हैं, स्वतंत्रता सेनानियों से बातचीत, आगरा के चमड़ा उद्योगों में काम करने वाले परिवारों से संपर्क और संवाद और इसी प्रकार की दूसरी चीजें... 1951 के बाद के अखबारों को देखना कि कोई कानून, सामाजिक जीवन में, तब तक चलने में रहा कि नहीं?
सुदीप : और उन 'आठ सालों' में से, इस प्रकार के शोध में कितना वक्त लगा होगा?
विक्रम : भगवान जाने! कभी-कभी ठीक-ठीक बता पाना असंभव-सा लगता है। मुझे अपनी डायरी देखनी पड़ेगी, कौन-सा दिन और समय होगा। देखिए कुछ हिस्सा यह शोध का होगा, लेकिन जब आप यह कर रहे हैं, तब चरित्रों के बारे में भी सोचते होंगे, मन में विचार भी आते होंगे, कुछ नोट्स भी ले रहे होते हैं। यानी, कुल मिलाकर यह एक मिली-जुली प्रक्रिया है।
सुदीप : दूसरा तत्व है, आपका काव्य- प्रयोग। 'वर्ड ऑफ थैंक्स' सॉनेट है। विषय सूची का किताब में, जहाँ-तहाँ, अमित चटर्जी और दूसरे पात्र, कविताएँ रचते हैं। मैं तहेदिल से यह जानना चाहता हूँ कि ऐसी विशुद्ध कविता की तरफ आपका झुकाव, गद्य शैली को अप्रभावी मानकर हुआ है?
विक्रम : आपको पता है कि दिल में दो आधारतल और दो शिखर होते हैं। इस रूप में, आप मान लें कि मैंने अपने दिल के दो भाग किए हैं - एक काव्य प्रेम के लिए और दूसरा गद्य के लिए। मैं सचमुच यह महसूस करता हूँ कि कविता मेरा सबसे गहरा प्यार है, यह उपन्यास लिखने की प्रक्रिया में मैंने अनुभव किया है कि अच्छा और साफ-सुथरा गद्य लिखना भी कितना कठिन काम है। यह कविता रचने की तुलना में आसान काम नहीं है।
सुदीप : अमित चटर्जी किस सीमा तक आपके प्रतिरूप हैं?
विक्रम : मैं ऐसी परिस्थितियों में कैद हूँ कि यदि मैं कहूँ कि वह बहुत अंशों में मेरी तरह है, तो मैं अपने को अपराधी मान लूँगा। ऐसा है, कि वह कुछ अंशों में टुकड़ों में मेरी तरह है। लेकिन ऐसा उत्तर भी एक उपन्यासकार का टालू उत्तर है। सच पूछिए तो वह कुछ मेरा अंश, कुछ दूसरे लोगों का अंश और बहुत कुछ कल्पनाप्रसूत है। वह वास्तव में 'मैं' नहीं है। स्पष्टता, उपन्यास में उसका विन्यास एक अंतरंग मित्र की तरह हुआ है। वह मेरा एक हिस्सा भर है, कुछ और पहलू भी हैं, जिनका जिक्र मैं यहाँ नहीं करना चाहूँगा।
सुदीप : आपने स्कूल जीवन का आनंद लिया। पहले भारत, फिर ब्रिटेन और इसके बाद अमेरिका में?
विक्रम : मैंने स्कूल का खूब आनंद लिया। मेरे ख्याल से मेरे भाई ने उससे भी ज्यादा। इसका कारण, मेरे स्वभाव की भिन्नता है। जरूरत से ज्यादा सदाग्रही और ईमानदार। साथ-साथ, कुछ और भी कारण हो सकते हैं। इस वर्ष मैं अपने पुराने दून स्कूल गया था उसके स्थापना दिवस पर बतौर मुख्य अतिथि।
सुदीप : आपने कविता लिखना कब शुरू की? क्या कविता ने आपको हमेशा आकर्षित किया है?
विक्रम : मेरा अनुमान है कि जब मैं इंग्लैंड के विश्वविद्यालय में था। मैंने कविताएँ लिखनी शुरू कर दी थीं। उस समय मेरी उम्र 19-20 की रही होगी। मैंने इसके लिए आधार-सामग्री पहले ही तैयार कर ली थी। वास्तविक लेखन तो तब हुआ, जब अभिव्यक्ति का भावनात्मक दबाव जोर मारने लगा।
सुदीप : उस समय आपके प्रिय कवि कौन-कौन से थे?
विक्रम : उस समय की अब मुझे याद नहीं है। हाँ, बाद में जब मैंने अमेरिका में कविताएँ लिखना शुरू किया, तब अमेरिकी कवि टिमोथी स्टील और ब्रिटिश कवि फिलिप लारकिन, मेरे प्रिय कवि थे।
सुदीप सेन : युवा भारतीय लेखकों के बारे में आपकी राय?
विक्रम : उनके बारे में कुछ बता पाना कठिन है। मैंने उनका बहुत-कुछ नहीं पढ़ा है। मैंने रोहिन्टन मिस्त्री का उपन्यास नहीं पढ़ा है, लेकिन उनकी कुछ कहानियाँ पढ़ी हैं, जो काफी अच्छी हैं। 'ए सुटेबल ब्वॉय' को समाप्त करने की सबसे बड़ी खुशी यही है कि अब मुझे बहुत कुछ पढ़ने का समय मिलेगा।
सुदीप सेन कवि और आलोचक हैं। इनका लेखन अनेक अंतरराष्ट्रीय जर्नलों में प्रकाशित है। उनकी किताब 'पोस्ट मार्क्ड इंडिया : न्यू एंड सेलेक्टेड पोएम्स' को हाउथॉड्रन फेलोशिप (यूके) मिली है और इसे पुश्कार्ट पुरस्कार (यूएसए) के लिए नामित किया गया है। आप एडिनबर्ग के स्कॉटिश कविता पुस्तकालय में अंतरराष्ट्रीय आवासी कवि के रूप में रहे हैं और हार्वर्ड विश्वविद्यालय में विजिटिंग स्कॉलर भी।
साभार : पहल