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उसके खिलौने

सूरज प्रकाश

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सात-आठ की उम्र होगी उसकी। साथ वाले प्लॉट पर इमारत बननी शुरू हुई है, वहीं मजदूरों ने अपनी झोपडि़याँ-सी खड़ी कर रखी हैं। उन्हीं में से ‍िकसी मजदूरिन की बेटी है। आते-जाते अक्सर दिख जाती है। मिट्टी,कंकड़ -पत्थरों और एक टूटी हुई गुडि़या से अकेली खेलती हुई।

कपड़े मैले-कुचैले, बाल उलझे और चेहरे पर ढेर सारा गर्द-गुबार। इसके बावजूद उसके चेहरे पर गज़ब का आकर्षण और भोलापन है। कई बार वह गेट से टिकी हमारी कॉलोनी में लगे झूलों पर बच्चों को खेलता देखती रहती है, लेकिन वॉचमैन हर बार उसे दुत्कारकर भगा देता है।

न जाने क्यों उसे देखते ही प्यार करने को जी चाहता है, लेकिन हर बार संकोचवश रह जाता हूँ। काश! वह भी साफ-सुथरी रहती और कॉलोनी के बच्चों के साथ खेल सकती। बाज़ार से उसके लिए एक अच्छी- सी गुडि़या लाता हूँ और उसे बुलाकर देता हूँ। उसे विश्वास नहीं होता, खिलौने उसे ही दिए जा रहे हैं। हिचकिचाती है। नहीं लेती। मैं जबरदस्ती उसे थमा देता हूँ। वह अपने हाथों में यह अद्भुत उपहार लिए ठिठकी रह जाती है। उसे विस्मित- सा छोड़ संतुष्ट होकर घर लौट आता हूँ।

थोड़ी देर बाद दसवीं मंजिल पर बने अपने घर की बाल्कनी से नीचे झाँकता हूँ। गेट के बाहर वॉचमैन ने उसे पकड़ लिया है और गुडि़या छीन ली है। हाव-भाव से यही लगता है जैसे पूछ रहा हो, अन्दर कैसे आई और ये गुडि़या व चॉकलेट किससे छीनकर ले जा रही है? लड़की कुछ बताना चाह रही है पर उसे मेरा घर नहीं पता, वह कुछ नहीं बता पाती। रुआँसी-सी खड़ी है। वॉचमैन ने उससे सब कुछ छीनकर उसे गेट के बाहर धकेल दिया है ।

वह वापस मिट्टी के ढेर की तरफ जा रही है, जहाँ कुछ देर पहले वह खेल रही थी । कंकड़- पत्थरों से।

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