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बोनस

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- नीता श्रीवास्तव
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हमारे एक साथी हैं मिस्टर सिपाहा। यूपी से हैं। उन्होंने अपने क्वार्टर के बरामदे को 'चौपाल' नाम दे रखा है। हर शाम चौपाल पर अच्छी बैठक जमती है। चाय-पानी कुछ नहीं... सिर्फ बातें ही बातें...दुनिया भर की बातें।

बहुत मजा आता है मुझे। चौपाल का एक चक्कर दिनभर का अकेलापन और उदासी दूर कर देता है। मि. सिपाहा चौपाल के जरिए करना भी यही चाहते हैं।

उस दिन भी किस्से-कहकहे जारी थे कि शर्माजी गेट से ही तालियाँ बजाते हुए आए- 'खुशखबरी लाया हूँ यूनियन ऑफिस से... इस साल हमें पचपन दिन की बजाय पूरे सत्तर दिन का बोनस मिलेगा... सत्तर दिन का बोनस... है ना खुशखबर।'
  हमारे एक साथी हैं मिस्टर सिपाहा। यूपी से हैं। उन्होंने अपने क्वार्टर के बरामदे को 'चौपाल' नाम दे रखा है। हर शाम चौपाल पर अच्छी बैठक जमती है। चाय-पानी कुछ नहीं... सिर्फ बातें ही बातें...दुनिया भर की बातें।      


सुनकर हम सबके चेहरे खिल गए, मगर उसी क्षण -'शर्माजी... और कितने बोनस लोगे...? एक साल और...अगले साल तो रिटायरमेंट है आपका।'

सन्नाटा छा गया चौपाल पर। शुक्लाजी का वाक्य सुनते ही शर्माजी की आँखों में उतर आई पीड़ा स्पष्ट नज़र आ रही थी - बेटियाँ ब्याहनी है... बेटा अभी बेरोजगार है... बीबी अस्वस्थ है... उस पर दस्तक देता रिटायरमेंट।

इन समस्याओं का सामना करने की हिम्मत बँधाने की बजाय रिटायरमेंट की तारीख याद दिलाना क्रूरता ही है। रिटायर तो सभी को होना है एक न एक दिन... कहना चाहकर भी मैं चुप रह गई थी।... निश्चित ही यह मेरी कायरता थी।

उस दिन के बाद शर्माजी कभी चौपाल पर नहीं आए और न ही कभी बोनस को लेकर बहस छिड़ी... न खुशियाँ मनीं चौपाल पर।

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