Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

माँ तुझे सलाम

Advertiesment
हमें फॉलो करें माँ तुझे सलाम
विजया ठाकुर
WDWD
घटना आज से कुछ वर्ष पहले की है। ढलती दुपहरी का वक्त था। घर के सामने से एक सब्जी वाली निकली। उसके साथ उसका दस वर्षीय बेटा भी कुछ सब्जियों की थैलियाँ साइकल पर रखे हुए चल रहा था।

मैंने सब्जियाँ लीं और उससे पूछा- 'तुम इस कॉलोनी में पहली बार दिख रही हो?' वह बोली- 'आज हटरी (बाजार) बंद है। इसलिए यहाँ सब्जी बेचने आ गई।'

मेरे बाबूजी (स्व. ससुरजी) हमारी बात सुन रहे थे। उन्होंने उस लड़के को अपने पास बुलाया व उससे पूछा- 'क्या तुम पढ़ते हो?' (वह उस समय स्कूल ड्रेस में था) लड़के ने हाँ कहा।

'स्कूल कब जाते हो?'

'सुबह जाता हूँ, फिर स्कूल से आने के बाद माँ के संग सब्जी बेचता हूँ।'

बच्चे से प्रभावित होकर बाबूजी ने उसे कुछ रुपए देने की पेशकश की। लड़का चुपचाप सिर झुकाए खड़ा रहा, पर उसने हाथ नहीं बढ़ाया।

उन्होंने उसे समझाया कि इन रुपयों से तुम पढ़ाई से संबंधित सामग्री ले लेना। लड़का कभी अपनी माँ को देखता, कभी बाबूजी को, पर उसने रुपए के लिए हाथ नहीं बढ़ाया। उसकी दुविधा को देखकर बाबूजी ने अंत में कहा, अच्छा ये रुपए तुम उधार समझकर रख लो, जब तुम्हारे पास आ जाएँ तो वापस कर देना।

webdunia
WDWD
बच्चे ने माँ से पूछा, माँ ने शालीनता से मना कर दिया। मैं सोच में पड़ गई, उन अति साधारण स्थिति के माँ और बेटे के लिए 500 रु. की रकम बहुत होना चाहिए थी, फिर भी उन दोनों ने विनम्रतापूर्वक रुपए लेने से मना कर दिया और चले गए।

वे दोनों जाते-जाते हमें स्वाभिमान का पाठ पढ़ा गए। सच है कि माँ हमारे जीवन की प्रथम गुरु और घर हमारी प्रथम पाठशाला है,जहाँ हम संस्कारों में ढलते हैं और नैतिकता के पाठ पढ़ते हैं, जो हमारे आजीवन काम आते हैं। उस सब्जी वाली के लिए मेरे मुँह से बरबस निकल गया 'माँ तुझे सलाम।'

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi