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रखवाला

लघुकथा

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डॉ. दरवेश भारती
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पार्क में दस-बारह चक्कर लगाने के बाद मुझे थकान सी महसूस हुई और मैं एक बेंच पर जाकर बैठ गया। अचानक क्या देखता हूँ कि कोई कंबल लपेटे नीचे घास पर पड़ा है। जब मैं उसे उठाने को हुआ तो सामने बैठे एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने मुझे आवाज लगाते हुए कहा - 'भाई साहब! इसे पड़ा रहने दो और आप भी इधर आ जाओ।'

'मुझ पर ही कोई संकट न आन पड़े', यह सोचकर मैं उधर ही जा बैठा। तब उस व्यक्ति ने बताया, 'यह शराब के नशे में धुत्त है, नशा टूटेगा तो खुद ही खड़ा हो जाएगा, आप परेशान न हों।'
  'यह मेरा बड़ा लड़का है। सुबह पाँच बजे ड्‍यूटी करके आया और पीना शुरू कर दिया। होश से बाहर होते ही घर से निकलने लगा। मैंने बहुत रोका, पर मानता कौन है। कंबल उठाए मैं भी पीछे-पीछे हो लिया और यहाँ आकर इस पर डाल दिया...       

मैंने उत्सुकतावश पूछ लिया, 'पर यह है कौन जो इतनी ठंड में घास पर पड़ा है?'

उनका उत्तर था, 'यह मेरा बड़ा लड़का है। सुबह पाँच बजे ड्‍यूटी करके आया और पीना शुरू कर दिया। होश से बाहर होते ही घर से निकलने लगा। मैंने बहुत रोका, पर मानता कौन है। कंबल उठाए मैं भी पीछे-पीछे हो लिया और यहाँ आकर इस पर डाल दिया।

अब हर आते-जाते को टोकना पड़ता है। कभी गली में गिरा होता है तो कभी सड़क पर। क्या करूँ? बहुत परेशान हूँ - आखिर बाप हूँ ना!'

और भी न जाने वह क्या-क्या कहता रहा, पर मैं उसे अनसुना करके वहाँ से उठ खड़ा हुआ, क्योंकि उसके मुँह से भभके मारती शराब की गंध अब मेरे लिए अहसह्य हो चली थी।

साभार : कथाबिंब

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