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लघुकथा : मीठी यादें

- शिखा पलटा

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मेरा नन्हा बेटा स्कूल से घर आकर रोज से कुछ ज्यादा ही खुश था। पता चला जनाब की इस खुशी के पीछे कारण था स्कूल मैं उसके दोस्त का जन्मदिन और जन्मदिन पर मिली एक खास टॉफी। टॉफी को देख कर 25 साल पहले की यादें तरोताजा हो गई।

एक बार जब मैं दादाजी के साथ घर का सामान लेने गई थी तब टीवी में पहली बार मैंने इस टॉफी का विज्ञापन देखा था। मैंने जिद कर दादाजी से वह टॉफी ली थी। तब से वे जब भी सामान लेने जाते मेरे लिए वही टॉफी जरूर ले कर आते।

जैसे ही वे घर पहुंच जाते, बाहर से मेरा नाम पुकारते- शिखा, देखो मैं तुम्हारी मनपसंद टॉफी लाया हूं। उनके चेहरे पर उतनी ही खुशी रहती थी जितनी आज मेरे बेटे के चेहरे पर टॉफी को लेकर है।

मैं जैसे ही उनके पास आती वे मेरे आगे दोनों हाथों की मुट्ठी बंद कर कहते- 'अच्छा चलो बताओ मेरी कौन-सी मुट्ठी में तुम्हारी मनपसंद टॉफी हैं? और दादाजी व मेरा यह खेल चलता रहता जब तक मैं सही जवाब नहीं बता देती। फिर 'थैंक्यू दादाजी' कह कर मैं खुशी से चली जाती। उनकी हंसी से समझ में आ जाता था कि उन्हें इस थैंक्यू का ही इंतजार था।

चीजें तो वही रह जाती हैं लेकिन उनसे जुड़ी यादें जिंदगी का अहम हिस्सा बन जाती हैं। मैं इन्हीं मीठी यादों मैं खोई हुई थी कि मेरे बेटे ने दोनों हाथों की मुट्ठी बंद कर मेरे सामने हाथ बढ़ाए और कहा 'मम्मा बताओ मेरी कौन-सी मुट्ठी में टॉफी है?' मेरी आंखें मधुर यादों से नम हो गई।


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